Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्रजातिके वैश्य हैं । ये जन्मसे ही कवि हैं और शतावधानी हैं अर्थात् इनकी मानसिक शक्ति एक ही समयमें जुदे जुदे सौ कार्योको कर सकती है। यद्यपि ये एक मात्र गुजराती भाषा ही जानते हैं तथापि अपनी अद्भुत शक्तियोंका भिन्न भिन्न सोलह भाषाओं पर एक ही बारमें उपयोग कर सकते हैं। जिज्ञासुओंको ऐसे महा पुरुषका परिचय करा कर हम प्रसन्न हुए।"
अँगरेजीके प्रसिद्ध पत्र 'टाईम्स आफ इण्डिया' के ता० २४ जनवरी १८८७ के अंकमें लिखा थाःस्मरण-शक्ति तथा मानसिक शक्तिके अद्भुत प्रयोग।
"राजचंद्र रवजीभाई नामके एक १९ वर्षके युवा हिन्दूकी स्मरण-शक्ति तथा मानसिक शक्तिके प्रयोग देखनेके लिए, गत शनिवारको संध्या-समय, फ्रामजी कावसजी इन्स्टीट्यूटमें देशी सजनोंका एक भव्य सम्मेलन हुआ था । इस सम्मेलनके सभापति डाक्टर पिटर्सन नियुक्त हुए थे। भिन्न भिन्न जातियोंके दर्शकोंमेंसे दस सज्जनोंकी एक समिति संगठित की गई। इन सज्जनोंने दस भाषाओंके छः छः शब्दोंके दस वाक्य बना कर लिख लिये
और उन्हें बे-तरतीबीसे बारी बारीसे सुना दिया। इसके थोड़े ही समय बाद इस हिन्दू युवाने दर्शकोंके देखते देखते अपनी स्मृति के बल उन सब वाक्योंको क्रम बार सुना दिया। युवककी इस विलक्षण शक्तिको देख कर उपस्थित मंडली बहुत ही खुश हुई । इस युवाकी स्पर्शन-इन्द्रिय और मनइन्द्रिय अलौकिक थी। इस बातकी परिक्षाके लिए भिन्न भिन्न आकारकी कोई बारह जिल्हें इसे बतलाई गई, और उन सबके नाम सुना दिये गये। इसके बाद इसकी आखों पर पट्टी बाँध कर इसके हाथों पर जो जो पस्तकें
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