Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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परिचय।
है कि "इस विषयमें क्या लिखें ? क्या कहें ? इसके लिए उपयोग लगा कर अपने भीतर देख" । इस परसे यह नहीं कहा जा सकता कि उनका यह उत्तर 'हाँ' के रूपमें है या 'ना' के रूपमें । कुछ कहा जा सकता है तो वह इतना ही कि उनका यह उत्तर गुप्त-स्थितिमें है। जो यह पृथक्करण सत्य हो तो इसका सार यह निकला कि पहले तीन प्रश्नोंका उत्तर 'हाँ' के रूपमें है और चौथे आयुर्बल-सम्बन्धी प्रश्नका उत्तर गुप्तस्थिति में है-उन्हें अपनी आयुकी स्थितिमें सन्देह था । तब इस परसे यह अच्छी तरह जाना जा सकता है कि उन्होंने शासनोद्धारका काम किन किन कारणोंसे हाथमें नहीं लिया था। ___ अब कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो वर्तमान जनसमाजका ध्यान खींच रहे हैं। उनके विषयमें कुछ स्पष्ट करना आवश्यक प्रतीति होता है कि उनके सम्बन्धमें श्रीमद् राजचंद्रके क्या अभिप्राय थे। पहले इस बातका खुलासा किया जाता है कि श्वेतांबर तथा दिगम्बर सम्प्रदायके सम्बन्धमें उनके क्या विचार थे; तथा श्वेतांबर जिन आगमोंको मानते हैं उन्हें जो दिगम्बर लोग नहीं मानते इस विषयमें उनके क्या अभिप्राय हैं। ___ सं० १९५३ भादों विदी अमावसके लिखे हुए एक पत्रमें उन्होंने इन दोनों प्रश्नोंके सम्बन्धमें लिखा था-"शरीरादिकी शक्ति घट जानेके कारण सब मनुष्य दिगम्बर-वृत्तिके अनुसार प्रवृत्ति कर चारित्रका निर्वाह नहीं कर सकते । इस कारण वर्तमान कालमें जो ज्ञानी पुरुषोंने चारित्रके निर्वाह के लिए समर्याद श्वेतांबर-वृत्तिका उपदेश किया है उसका निषेध करना उचित नहीं है। इसके साथ यह भी कर्त्तव्य नहीं है कि वस्त्र रखनेके आग्रहके वश दिगम्बर-वृत्तिका एकान्तसे निषेध कर, वस्त्र आदिमें
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