Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत
षट्पदना षट् प्रश्न तें, पूछया करी विचार। ते पदनी सर्वांगता, मोक्षमार्ग निरधार ॥ १०६॥ पदषट्कस्य षट् प्रश्नाः पृष्टाः संचिन्त्य रे ! त्वया। तत्पदानां समूहत्वे मुक्तिवासः सुनिश्चितम् ॥ १०६ ॥
अर्थात् हे शिष्य, तूने जो विचार कर छः पदोंके सम्बन्धमें छः प्रश्न किये हैं, तू निश्चय समझ कि उनकी पूर्णतामें ही मोक्ष-मार्ग है । इनमेंसे एक भी पदके उत्थापनका एकान्त या अविचारसे यत्न करने पर मोक्ष-मार्ग सिद्ध नहीं हो सकता। जाति-वेषनो भेद नहीं, कह्यो मार्ग जो होय । साधे ते मुक्ति लहे, एमां भेद न कोय ॥ १०७॥ जातेर्वेषस्य नो भेदो यदि स्यादुक्तमार्गता। तां तु यः साधयेत् सद्यो न काचित् तत्र भिन्नता १०७ अर्थात्--जो मोक्ष-मार्ग बतलाया गया है वह हो तो चाहे जिस जाति या वेषसे प्राप्त किया जा सकता है। उसमें कुछ भी भेद नहीं है। जो उसका साधन करेगा उसे मोक्ष प्राप्त होगा ही। इसी प्रकार उस मोक्षमें भी किसी प्रकारकी ऊँच-नीचताका भेद नहीं है अथवा ये जो बचन कहे हैं उनमें कोई प्रकारका भेद-फेर-फार-नहीं है। कषायनी उपशांतता, मात्र मोक्षअभिलाष । भवे खेद अंतर दया, ते कहिये जिज्ञास ॥ १०८॥
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