Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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परिचय ।
१२ तो श्रीमद् राजचंद्रके सम्बन्धमें जो कुछ भी कहा गया है वह ऐसा है जैसा एक गूंगा अपनेको आये हुए खमका हाल न कह सके और इससे सुननेवालोंको दुःख हो । अब तक श्रीमद् राजचंद्रके सम्बन्धमें जो कुछ कहा गया है संभव है जो लोग श्रीमद् राजचंद्रसे परिचित नहीं है उन्हें यह कहना कुछ अतिशयोक्तिको लिये जान पड़े; परन्तु यदि उन्हें इनका परिचय हुआ होता तो वे यह कहने लगते कि श्रीमद् राजचंद्रकी शक्ति और दशाके सम्बन्धमें जो कुछ कहा गया कहा गया है वह जगत्के भयसे बहुत ही थोड़ेमें कहा गया है और उसमें उनके विचारोंकी पूर्ण स्वतंत्रता दिखलाई नहीं गई है। दोनों पक्षके लोग जो कुछ भी कहें; परन्तु लेखकने उनके इस कहनेकी परवा न कर इतने ही कहनेका प्रयत्न किया है कि जितना उसे वर्तमान देश-कालके अनुकूल और समाजके लिये कल्याणकारी जान पड़ा है।
ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः
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