Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत
दृढ़ताके साथ कहा करते हैं कि बंध और मोक्ष यह मात्र कल्पना है। परन्तु ऐसी दशा उनकी अभी हुई नहीं है और उन पर मोहका प्रभाव खूब पड़ा हुआ है।
वैराग्यादि सफळ तो, जो सह आतमज्ञान । तेम ज आतमज्ञाननी, प्राप्तितणां निदान ॥६॥
वैराग्यादि तदाऽवन्ध्यं यद्यात्मज्ञानयोगयुक् । तथैव हेतुस्तच्चैव विवेकज्ञानप्राप्तये ॥६॥ अर्थात्-वैराग्य, त्याग आदि जितनी क्रियायें हैं वे तभी सफल हो सकती हैं जब कि उनके साथ साथ आत्म-ज्ञान भी हो-आत्मज्ञान होने पर ही ये सब मोक्षकी कारण हैं । और जहाँ आत्म-ज्ञान न हो; परन्तु आत्म-ज्ञानकी प्राप्ति के लिए ये की जाती हों तो वहाँ आत्म-ज्ञान हीकी कारण हैं। ___ समर्थन--त्याग, वैराग्य, दया आदि जो क्रियायें हैं इनका अन्तरंग वृत्तिसे सम्बन्ध है, इस कारण यदि ये आत्म-ज्ञानके साथ साथ हों तो सफल होती हैं-संसारके कारणको नष्ट करती हैं, अथवा आत्म-ज्ञानकी कारण हैं। मतलब यह कि पहले इस गुणके होने पर ही आत्मामें सद्गुरुका उपदेश प्रविष्ट हो सकता है। अन्तःकरण शुद्ध हुए बिना सद्गुरुका उपदेश हृदयमें प्रविष्ट नहीं हो सकता । अथवा यह समझना चाहिए कि ये वैराग्यादि आत्म-ज्ञानकी प्राप्तिके साधन हैं। यहाँ जो क्रिया-जड़ हैं उनके लिए यह उपदेश किया गया है कि केवल कायक्लेश करना आत्मज्ञानकी प्राप्तिका कारण नहीं है। किन्तु वैराग्य आदि गुण आत्म-ज्ञानकी
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