Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत
दृष्टिसे हाँ सचमुच ही आत्मा निस्संग है, परन्तु यह बात तो तब हो सकती है जब कि उसे अपने स्वरूपका भान हो जाय ।
कर्ता ईश्वर को नहीं, ईश्वर शुद्ध स्वभाव । अथवा प्रेरक ते गण्ये, ईश्वर दोषप्रभाव ॥ ७७ ॥ नेश्वरः कोऽपि कर्ताऽस्ति स वै शुद्धस्वभावभाक् । यदि वा प्रेरके तत्र मते दोषप्रसङ्गता ॥ ७७ ॥
अर्थात् - जगत्का या जीवोंका कर्त्ता कोई ईश्वर भी नहीं है; क्योंकि ईश्वर वह है जिसका आत्म-स्वभाव शुद्ध हो गया है । और यदि उसे प्रेरक-रूपसे कर्मोंका कर्त्ता कहो तो उसके शुद्ध स्वभावमें दोष आवेगा । इस कारण जीवके कर्म करनेमें ईश्वरकी प्रेरणा भी नहीं मानी जा सकती।
समर्थन -तीसरे कहा गया कि ईश्वर वगैरह कोई जीवके कर्म चिपका देते हैं, इस लिए वे अनायास होते हैं, सो यह भी कहना ठीक नहीं है । यद्यपि ऐसी दशा में पहले ईश्वरके खरूपका निश्चय करना उचित है और इस प्रसंग पर तो और भी विशेष उचित है तथापि यहाँ किसी ईश्वर या विष्णु आदिको किसी तरह कर्त्ता स्वीकार कर उस पर विचार करते हैं । जो ईश्वर आदि कोई कर्मोंके चिपका देनेवाला हो तो फिर जीव पदार्थ कोई नहीं ठहरेगा; क्योंकि प्रेरणा आदि धर्म - स्वभाव - के धारक जीवका फिर अस्तित्व ही समझमें नहीं आता । ये धर्म तो फिर ईश्वर - कृत 1 ठहरते हैं - ईश्वरके गुण हो जाते हैं । तब फिर जीवका शेष स्वरूप रह ही क्या जाता है कि जिससे उसे जीव या आत्मा कहा जाय । इस लिए यही कहना ठीक है कि कर्म ईश्वर-प्रेरित नहीं हैं, किन्तु स्वयं जीवके ही
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