Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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आत्मसिद्धि।
___ अर्थात्-देह मात्र परमाणुओंके संयोगसे बना है और संयोग-सम्बन्धसे आत्माके साथ इसका संयोग हो रहा है । देह जड़ है, रूपी है और दृश्य रूप है, अर्थात् किसी दृष्टाके जाननेका विषय है-यह स्वयं अपने आपको भी नहीं जान सकता तब चैतन्यकी उत्पत्ति और नाशको तो जान ही कैसे सकता है । देहके एक एक परमाणुका विचार करनेसे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि देह जड़ ही है । तब जड़ देहसे चैतन्यका उत्पन्न होना कभी संभव नहीं । उसी प्रकार नष्ट होकर उसका देहके साथ मिल जाना भी संभव नहीं । और देह रूपी-स्थूल-है; और चैतन्य अरूपी, सूक्ष्म और दृष्टा है तब देहसे चैतन्यकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है। तथा नाश होकर उसके साथ मिल भी कैसे सकता है ? अच्छा यह बतलाओ कि यदि देहसे चैतन्य उत्पन्न होता है और देहके नाशके साथ ही चैतन्यका नाश हो जाता है, तो इस बातका अनुभव कौन करता है अर्थात् इस प्रकारका ज्ञान किसको होता है ? क्योंकि ज्ञाता चैतन्यकी उत्पत्ति देहसे पहले तो होती नहीं और नाश उसके पहले हो जाता है तब यह अनुभव किसे होता है ? __ समर्थन-शिष्यने जो यह शंका की कि जीवका स्वरूप अविनाशीनित्य त्रिकाल स्थिर रहनेवाला नहीं है वह तो देहके संयोगसे अर्थात् देहके साथ साथ जन्म धारण करता है और देहके नाशके साथ ही नष्ट हो जाता है। परन्तु यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि देह और जीवका मात्र संयोग-सम्बन्ध है। इससे देह जीवके मूल-स्वरूपके उत्पन्न होनेका कारण नहीं हो सकता; किन्तु देह ही संयोग-सम्बन्धसे उत्पन्न होनेवाला पदार्थ है। इसके सिवा देह जड़ है--किसीको जान नहीं सकता । और जब वह स्वयं
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