Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीतकोइ क्रियाजड थइ रह्या, शुष्क ज्ञानमां कोइ । माने मारग मोक्षनो, करुणा उपजे जोइ ॥३॥
केचित् क्रियाजडा जाताः केचिद् ज्ञानजडा जनाः।
मन्वते मोक्षमार्ग तं दृष्ट्वाऽनुकम्पते मनः॥३॥ अर्थात्-कितने केवल क्रिया-कांडमें ही लग रहे हैं और कितने केवल शुष्क-ज्ञानमें । और ऐसे लोग मोक्ष-मार्गका स्वरूप भी ऐसा ही मानते हैं। ऐसे लोगोंको देख कर दया आती है। _ समर्थन---जो लोग अपना मत-पक्ष छोड़ कर सद्गुरुके चरणोंकी सेवा करते हैं वे पदार्थके स्वरूपको जान पाते हैं और निज-पदकी आत्मस्वरूपकी-ओर लक्ष देते हैं । अर्थात् बहुतसे लोग जो केवल जड़ क्रियाओंमें ही लगे रहते हैं, इसका कारण यह है कि उन्होंने उन असद्गुरुओंका आश्रय लिया है जो आत्म-ज्ञान और उसके साधनोंको जानते नहीं हैं । वे केवल जड़ क्रियाओं-कायक्लेश-का मार्ग जानते हैं, और उन्हींमें दूसरे लोगोंको लगाते हैं। इस प्रकार वे कुल-धर्मको दृढ़ करते रहते हैं;
और इसी लिए फिर इन लोगोंके आश्रित जनोंको सद्गुरुओंका समागम प्राप्त करनेकी इच्छा नहीं होती; अथवा कभी समागम मिल भी जाय तो अपने पक्षकी दृढ़ वासना उन्हें सदुपदेशके सन्मुख होने नहीं देती। परिणाम इसका यह होता है कि उनका जड़ क्रियाओंसे छुटकारा नहीं हो पाता और न उन्हें परमार्थकी प्राप्ति होती है । और जो केवल शुष्क-ज्ञानी हैं उन्होंने भी सद्गुरुओंके चरणोंका आश्रय नहीं लिया; किन्तु केवल अपनी बुद्धिकी कल्पना पर भरोसा रख आध्यात्मिक ग्रन्थ पढ़े हैं
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