Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत आत्मसिद्धि।
मंगल। जे खरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत । समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत ॥१॥
यत्स्वरूपमविज्ञाय प्राप्तं दुःखमनन्तकम् ।
तत्पदं ज्ञापितं येन तस्मै सद्गुरवे नमः॥१॥ अर्थात्-जिस आत्म-स्वरूपके समझे बिना जो मैंने भूत-कालमें अनन्त दुःख भोगे हैं उस स्वरूपका जिनने मुझे ज्ञान कराया अर्थात् भविष्यकालमें जिन दुःखोंको मैं प्राप्त करता उनका मूल जिनने नष्ट कर दिया उन सद्गुरु प्रभुको मेरा नमस्कार है।
वर्तमान आ काळमां, मोक्षमार्ग बहु लोप । विचारवा आत्मार्थीने, भाख्यो अत्र अगोप्य ॥२॥
वर्तमाने कलौ प्रायो मोक्षमार्गस्य लुप्तता ।
सोऽत्राऽतो भाष्यते स्पष्टमात्मार्थिनां विचारणे ॥२॥ अर्थात्--इस वर्तमान कालमें मोक्ष-मार्गका बहुत ही लोप हो गया है, उसी मार्गका गुरु-शिष्यके संवाद-रूपसे यहाँ स्वरूप कहा जाता है।
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