Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
View full book text
________________
परिचय ।
उत्तर-(१) जिस भाँति घट-पट आदि वस्तुयें जड़ हैं उसी भाँति आत्मा ज्ञान-स्वरूप है । घट-पट आदि अनित्य हैं, वे त्रिकाल एक स्वरूपसे नहीं रह सकते । और आत्मा त्रिकाल एक स्वरूपसे रहता है, इस लिए कि वह नित्य है । 'नित्य' उसे कहते हैं जिसकी किसी संयोगसे उत्पत्ति न हो सके । यह नहीं दिखाई पड़ता कि आत्मा किसी प्रकारके संयोगोंसे पैदा होता है । कारण जड़ वस्तुओंके-चाहे जैसेहजारों ही संयोग क्यों न किये जायें तब भी यह कभी संभव नहीं कि उनसे चैतन्यकी उत्पत्ति हो सके । इस बातका सभीको अनुभव हो सकता है कि जो धर्म-स्वभाव-पदार्थमें नहीं होता वह धर्म या स्वभाव हजारों ही प्रकारके संयोगोंके इकट्ठा करने पर भी उस पदार्थमें कभी नहीं आ सकता कि जिसमें वह नहीं है । जिन घट-पटादि पदार्थों में ज्ञान-स्वरूप नहीं देखा जाता उनके नाना प्रकारके परिणामान्तर--अवस्थान्तर–द्वारा कितने ही संयोग किये गये हों अथवा ऐसे संयोग अपने आप हुए हों, पर वे होंगे उसी जातिके अर्थात् जड़-स्वरूप ही; ज्ञान-स्वरूप न होंगे। तब यह सिद्ध हुआ कि आत्मा-जिसका कि ज्ञानीजन मुख्य लक्षण ज्ञान-स्वरूप बतलाते हैं-इन जड़ पदार्थोंके संयोगों द्वारा अर्थात् पृथ्वी, जल, वायु, आकाश आदिके द्वारा किसी प्रकार उत्पन्न नहीं हो सकता । आत्माका मुख्य लक्षण ही 'ज्ञान-स्वरूप' है और जिसमें यह न पाया जाय-ज्ञानस्वरूपका जिसमें अभाव हो-वह अभाव जड़का मुख्य लक्षण है; जड़ और चेतनके ये दोनों अनादि स्वभाव हैं । ऊपर जिस प्रमाण द्वारा आत्मा नित्य सिद्ध किया गया है वह तथा उसके सिवाय और भी अनेक ऐसे प्रमाण हैं जो आत्माको 'नित्य' सिद्ध करते हैं। इसी प्रकार जरा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org