Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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परिचय ।
नहीं कर सकेंगे। इस विषयमें यदि सफलता लाभ कर सकते हैं तो वे सिर्फ आत्मवादी लोग ही हैं। कारण आत्मवादी आत्माको नित्य मानते हैं। तब क्या यह अयोग्य कहा जायगा कि आत्मा नित्य है, और इस आत्मवादको सिद्ध करनेके लिए श्रीमद् राजचंद्र प्रत्यक्ष उदाहरण थे ? और यदि यह कहना अयोग्य नहीं है तो यह कहना क्या योग्य नहीं है कि आत्मवादियोंको श्रीमद् राजचंद्रके प्रति अभिमान होना चाहिए। __ आत्मवादियोंके बाद जैनियोंका नम्बर है। और सच पूछो तो जैनियोंको इसमें सबसे अधिक अभिमान करनेका कारण है। वे अपने अन्य अजैन बन्धुओंको यह बात बतला सकते कि हममें एक ऐसे पुरुष हो गये हैं कि जिनकी शक्तियोंको लोगोंने महान् , चमत्कार-पूर्ण, अद्भुत और असाधारण स्वीकार की है। एक बड़ेसे बड़ा नास्तिक जिस भाँति विचार करता है उसी प्रकरकी विचार-पद्धतिसे जिन्होंने छहों दर्शनोंका निरीक्षण अत्यन्त निष्पक्ष-बुद्धिसे और जैनमार्गके प्रति किसी प्रकारका भी मोह न बतला कर किया था और इसके बाद ही जिनप्रणीत आत्म-स्वरूप और विश्व-व्यवस्थाका स्वरूप स्वीकार किया था । जैनियोंके लिए श्रीमद् राजचंद्र जिन-प्रणीत सिद्धान्तकी पुष्टि करनेके लिए एक बहुत ही उत्तम
और प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । और यदि ऐसा है तो इस विषयमें क्या जैनियोंको अभिमान न करना चाहिए ? प्रत्येक विचारशील मनुष्य इस बातको स्वीकार करेंगे कि इस जमानेमें जैनियोंके लिए अपने मार्गकी विशेष दृढ़ता करनेवाला इसकी अपेक्षा अन्य कारण भाग्यसे ही मिल सकता है।
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