Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्र
पत्रकी पहुँच तक मैं न दे सका। इस प्रकार पत्रके . उत्तर देनेमें विलम्ब हो गया। इससे मुझे खेद हुआ, और उसकी भावना अब तक भी मनमें बैठी हुई है। इसी मौके पर यह सुननेमें आया कि तुम्हारी बहुत शीघ्र इस ओर आनेकी इच्छा है । इससे चित्तमें कल्पना उठी कि पत्रका उत्तर देनेमें जो विलम्ब हुआ वह तुम्हारे समागमका कारण होने से एक तरह लाभकारक ही होगा । क्योंकि तुम्हारे पत्रमें कितने ही ऐसे प्रश्न थे जिनका लिख कर समाधान कर देना कठिन था । और जो इतने दिनों तक पत्रका उत्तर न मिलनेसे तुम्हारे हृदयमें एक प्रकारकी आतुरता बढ़ी होगी वह इसके लिए एक अच्छा कारण है कि तुम्हारा समागम जल्दी होगा और उसमें सब प्रश्नोंका उत्तर बहुत शीघ्र समझाया जा सकेगा । अब यह इच्छा रख कर, कि जब भाग्यसे तुम्हारा समागम होगा तब कुछ विशेष ज्ञानविषयक चर्चा - बार्ता करनेका अवसर मिल सकेगा, तुम्हारे प्रश्नोंका संक्षेपमें उत्तर लिखता हूँ । जिन प्रश्नोंका समाधान करनेके लिए निरंतर उसी विषयके विचारोंके परिशीलनकी आवश्यकता है उनका उत्तर मैं संक्षेपमें लिख रहा हूँ । अतः बहुत संभव है कि कितने ही प्रश्नोंका समाधान करना मौके पर कठिन भी पड़े। तब भी मेरे चित्तमें जो यह बात समा रही है कि मेरे बचनों पर तुम्हारा कुछ अधिक विश्वास रहनेके कारण तुम्हें बहुत धीरज रहेगा और इस तरह वे इन प्रश्नोंके उचित समाधान के कारण बन सकेंगे । तुमने अपने पत्रमें २७ प्रश्न पूछे हैं, उनका संक्षिप्त उत्तर नीचे लिखा जाता है ।
१ ला प्रश्न- - " आत्मा क्या चीज है ? उसके कर्मोंका बंध होता है या नहीं ?"
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वह क्या कर्ता है ? और
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