Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
View full book text
________________
परिचय ।
स्वतंत्र विचार स्थिर करना बड़ा ही गहन है। एक बहुत ऊँची सीमा तक विद्याध्ययन करनेके लिए जितनी शक्तिकी आवश्यकता है उसकी अपेक्षा किसी छोटेसे विषय पर मी स्वतंत्र विचार करनेके लिए बहुत अधिक शक्तिकी आवश्यकता है । जब कि सिविलियन होना दूसरे विद्वानोंके विचारोको मात्र स्मरणमें रखनेके बराबर है तब दूसरे धर्म-स्थापकोंने अपने अपने धर्मोकी स्थापना कैसे की इस विषयका शोध करनेके लिए अपनी स्वतंत्र विचार-शक्तिकी आवश्यकता है । इसके सिवाय जहाँ सिविलियन होनेवालेको शिक्षाके प्रारंभसे लेकर शिक्षाकी समाप्ति पर्यन्त उन्नत विचार-वातावरणका समागम मिलता रहता है वहाँ तीस वर्ष पहले काठियावाड़में गुजराती भाषाकी पाठशालाओंके स्थापनाका आरंभ ही था और एक तेरह वर्षके बालकने अपने छोटेसे गाँवको छोड़ कर बाहर कहीं पाव भी नहीं दिया था; तथा गुजरातीकी सातवीं पुस्तकके सिवाय कुछ पढ़ा-लिखा नहीं था । श्रीमद् राजचन्द्रने जब 'भावनाबोध' और 'मोक्षमाला' लिखी तब उनकी उम्र सोलह या सत्रह वर्षकी थी। तब क्या यह कहा जा सकता है कि तीन चार ही वर्षों में उन्होंने इतना अधिक ज्ञान प्राप्त कर लिया कि जिससे वे जैन और जैनेतर दर्शनोंका इतना गहरा अध्ययन कर उनकी तुलना कर सकें और उसे लिख कर दूसरोंको समझा सकें। इन चार वर्षों के मध्यमें उनने किसी ऐसे मनुष्यके पास भी अध्ययन नहीं किया था जिससे कि उनमें इस प्रकारके गंभीर तत्त्व-ज्ञान-सम्बन्धी ग्रन्थोंके लिखनेकी शक्ति आ जाती। हाँ, मात्र इतना सच है कि उन्होंने जैन तथा जैनेतर दर्शनोंका स्वतंत्र अध्ययन कर अनुभव प्राप्त किया था। और यही कारण है कि उनमें ग्रन्थ लिखनेकी शक्ति थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org