Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
View full book text
________________
श्रीमद् राजचन्द्र
कई विषयोंको अपने मनमें रख कर उन पर रचना कर सकते हैं। वे विषय जैसे ही सरल होते हैं वैसे ही उनमें कविता, गणित आदि कठिन विषय भी रहते हैं । चाहे जैसी अपरिचित और विदेशी भाषाके कहे हुए उल्टे-सीधे शब्दोंको वे सुधार कर ठीक कर देते हैं। और यह सब अवधानके साथ बीच बीचमें करते हैं । वास्तवमें यह शक्ति अद्भुत और असाधारण है। इस शक्तिके सम्बन्धमें इस बातका शोध लगा कर लाभ उठानेका प्रयत्न करना चाहिए कि यह कैसे तो विकाशको प्राप्त होती है तथा कैसे उपयोगमें आती है । इतना तो सच है कि ऐसी शक्तिका प्राप्त होना प्रकृतिप्रदत्त मात्र है। और यह उपहार किसी विरले ही भाग्यशालीको मिलतहै। इस बातके जाननेकी आवश्यकता है कि यह शक्ति विकाशको प्राप्त हो सकती है या नहीं, अथवा बढ़ सकती है या नहीं और मनुष्या मात्रके आचरण-व्यवहारमें आ सकती है या नहीं । कुछ लोग कहते हैं कि इसका उपयोग नहीं किया जा सकता; और करनेका यदि प्रयत्न किया जाय तो इसका बल दिनों-दिन कम होता जायगा । इस बातका पता लगाना चाहिए कि लोगोंके इस कथनमें कितनी सत्यता है। यदि इसका उपयोग न किया जा सके तब तो समझना चाहिए कि यह मात्र देखनेके लिए एक नई वस्तु ही ठहरी । परन्तु हम एकदम इस बातको कबूल नहीं कर सकते । क्योंकि जिस प्रकार मनुष्य-जातिमें ईश्वर-प्रदत्त शक्तियाँ विकसित हो सकती हैं, बढ़ सकती हैं उसी प्रकार इस अद्भुत शक्तिके सम्बन्धमें भी होना चाहिए । और यदि ऐसा होना संभव है तो फिर ऐसे विलक्षण पुरुषोंको उत्तेजित करके उनकी शक्तिको विकसित करने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org