Book Title: Atmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Author(s): Shrimad Rajchandra, Udaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
Publisher: Mansukhlal Mehta Mumbai
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श्रीमद् राजचन्द्र
देखा है वे जानते हैं कि यह भाग वीतराग - मार्गकी प्रवेशिका - रूप है । इस पुस्तक के विचारोंको पढ़नेसे यह स्पष्ट ज्ञान हो सकेगा कि लेख - कका जैन तथा अन्य दर्शन-विषयक ज्ञान कैसा था तथा उसमें संसार के स्वरूपका अवलोकन करनेकी शक्ति कैसी थी । इच्छा होती है कि 'भावनाबोध' तथा 'मोक्षमाला' के विषयोंका पृथक्करण करके उनके रचयिताकी उस समयकी शक्तिका वास्तविक परिचय कराया जाय; परन्तु यह प्रयत्न असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है । इस कारण इस जगह सिर्फ 'बालबोध - मोक्षमाला' का कुछ अंश लेखककी विचार श्रेणी तथा अवलोकन- बुद्धिकी परीक्षाके अर्थ उद्धृत कर देना उचित जान पड़ता है ।
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"इस संसार में अनेक प्रकारके धार्मिक मत हैं । यह बात न्याय - सिद्ध है कि ये सब मत अनादि कालसे चले आते हैं । परंतु जान पड़ता है कि देश - कालादिके सम्बन्धसे इन भेदोंमें रूपान्तर हो गया है । इनमें कितने ही मत केवल नास्तिक लोगोंके चलाये हुए हैं । कितने सामान्य नीतिको धर्म कहते हैं । कितने ज्ञानको धर्म कहते हैं । कितने अज्ञानको धर्म बतलाते हैं । कितने भक्तिको, कितने क्रियाको, कितने विनयको तथा कितने शरीरकी रक्षा करनेको ही धर्म कहते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि इन धार्मिक मतोंके स्थापकोंने लोगोंको ऐसा समझाया है कि हम जो कुछ कहते हैं वही सर्वज्ञ - वाणी - रूप है और सत्य है; और बाकीके जितने मत-मतांतर हैं वे सब असत्य हैं, कुतर्कवाद हैं । यही कारण है कि इन मताग्रही लोगोंने योग्य अयोग्यका विचार न कर परस्परका खण्डन किया है । वेदान्त तथा सांख्यके उपदेशक लोगों भी यही कहना है । और बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, शाक्त, वैष्णव,
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