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के बाद कुछ आचार्यों ने तो यहाँ तक लिखा है कि चाण्डाल भी यदि सम्यग्दर्शन से शुद्ध हो तो पूजनीय है। श्री अमृवचन्द्र द्वारा इन गाथाओं का कुछ भी उल्लेख न होने का कारण यह सिद्ध करता है कि ये पीछे से मिलाई गई हैं जिसकी पुष्टि उपर्युक्त कथन तथा अन्य कारणों से पाई जाती है। इन्हीं गाथाओं से. दिगम्बर सम्प्रदायों में मतभेद हुआ, उस समय का इतिहास इस बात का साक्षी है कि दोनों आम्नायों के विद्वानों में गहरा संघर्ष था । प्रो० उपाध्याय ने इन अतिरिक्त गाथाओं को ठीक माना है, उनका कहना है कि श्री अमृतचन्द्र ने इन गाथाओं को इसलिए छोड़ दिया था कि वे अत्यन्त दार्शनिक थे, और उनका विचार दोनों आम्नायों में मतभेद फैलाने का न था। उपरोक्त ९ गाथाओं के अतिरिक्त १३ गाथाएं वाद विवाद की नहीं हैं। श्री अमृतचन्द्र का उन्हें छोड़ देने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता, श्री अमृतचन्द्र ने अपनी प्रशस्ति में कई गाथाओं की खूब विवेचना की है और विशेष बातों को कई जगह दुहराया भी है। इसलिए यह सिद्ध नहीं होता कि उन्होंने ग्रन्थ को विस्तृत न होने के कारण इन गाथाओं को छोड़ दिया हो, उन्हें अपने विषय पर प्रेम और उत्साह था और विद्वता के दृष्टिकोण से उनका पद श्री जयसेन से कहीं ऊंचा है, उनकी प्रशस्ति से मालूम होता है कि उन्होंने ग्रन्थ की सारी गाथाए ली हैं। श्री जयसेन ने प्रवचनसार के अतिरिक्त समयसार और पंचास्ति कायसार में भी कुछ विवाद रहित गाथाओं का समावेश किया है, यद्यपि निश्चित रूप से इस बात का सिद्ध करना असम्भव है तथापि ऐसे चिन्ह मिलते हैं कि अमृतचन्द्र के समय तक ये अतिरिक्त गाथाएं ग्रन्थ का भाग न थीं।
जहाँ तक पुरुषों के लिए नग्नत्व और स्त्रियों के लिए सवस्त्रता का प्रश्न है भगवान महावीर के जीवन व्यवहार में स्वयं इसके लिए उदाहरण है । स्त्रीमुक्ति के विषय पर कोई प्राचीन ग्रन्थ निश्चित रूप से इस समस्या को हल नहीं करता, यदि ऐसा कोई ग्रन्थ होता तो तत्वार्थधिगम सूत्र के रचयिता स्वामी उमास्वाति इस विषय की उपेक्षा न करते, दिगम्बर सम्प्रदाय ने इस प्रश्न को युक्ति युक्त हल नहीं किया बल्कि ऐसा आशय निकाल लिया।
___ श्री अमृतचन्द्र मे जिन गाथाओं को नहीं लिया है उनमें से प्रवचनसार की ३ अतिरिक्त गाथाएं शब्द प्रति शब्द 'अष्ट पाहुड' में दुहराई गई हैं। यदि ये गाथाएं अष्ट पाहुड का भाग होती तो श्री कुन्दकुन्द अथवा अन्य लेखक द्वारा 'प्रवचनसार' में उनका संग्रह किये जाने का कोई विशेष कारण न होता । भगवत कुंदकुंद ने अपनी रचनाओं में सुन्दर विचारों को भिन्न २ तरीके से दोहराया है, किन्तु ये ११ गाथाए बिलकुल अनासङ्गिक है और ३ गाथाओं का शब्द प्रति शब्द दोहराना एक ऐसी ऊंची कोटि के विद्वान् के लिए सम्भव न था । अतः श्री कुंदकुंद