Book Title: Ashtpahud
Author(s): Parasdas Jain
Publisher: Bharatvarshiya Anathrakshak Jain Society

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Page 9
________________ प्रस्तावना __ प्रस्तुत पुस्तक भगवत् कुन्दकुन्द विरचित् "अष्ट पाहुड" का अनुवाद है, जो जन साधारण को जैन सिद्धान्त का सक्षिप्त परिचय कराने के उद्देश्य से लिखी इस कार्य में मुझे ३ प्रकाशित संस्करण उपलब्ध हुए:- . पं० रामप्रसादजी का बम्बई से सन् १९२४ में छपा संस्करण जिसमें हिन्दी प्रशस्ति भी दी गयी है। (२) पं० पन्नालाल जी द्वारा षट् प्राभूत' जो सन् १९२० में बम्बई से श्री माणिक चन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थ माला से प्रकाशित हुआ है। पं० सूरजभान जी कृत 'षट् पाहुड' जिसमें छ: अध्याय की मूल गाथाएं तथा उनका हिन्दी का अनुवाद भी दिया गया है। इन तीनों सस्करणों में मूल गाथाओं के साथ संस्कृत छाया भी दी गई है। अध्याय ३ गाथा १४ तथा अध्याय ५ गाथा ५२ को छोड़कर उपरोक्त संस्करणों में विशेष अन्तर नहीं है। पं० रामप्रसाद जी सम्पादित मूल गाथा ३-१४ अपने विषय का प्रतिपादन नहीं करती, अन्य संस्करणों का पाठ दूसरे शब्द के अंतिम अक्षर को तीसरे शब्द की आदि में उपसर्ग की भाँति प्रयुक्त करने पर ठीक बैठ जाता है और यह सही पाठ कहा जा सकता है। अध्याय ५ की ५२ वीं गाथा पं० पन्नालाल जी ता पं० सूरजभान जी प्रकाशित संस्करणों में समान है। पं० पन्ना जाल जी के संस्करणों में श्रुत सागर सूरि की संस्कृत प्रशस्ति भी है जो ईसा की १६ शताब्दी के विद्वान् थे। पं० रामप्रसाद जी का संस्करण सन् १९१० में लिखित पं० जयचन्द्र जी कृत हिन्दी टीका के आधार पर है। इसके अतिरिक्त पं० पन्नालाल जी ने अपने संस्करण का कई हस्त लिखित लिपियों से मिलान करने का परिश्रम किया, परन्तु पं. रामप्रसाद जी ने अपनी रचना किसी ऐसी जाँच का उल्लेख नहीं किया, प्रशस्ति करने पर भी ध्यान नहीं दिया। __ ऐसा प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने भूतज्ञानी शब्द की मनोनीत परिभाषा करने के लिए गाथा को दूसरे ही प्रकार लिख दिया है, उनका प्रयास

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