Book Title: Aryamatlila Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha View full book textPage 8
________________ (४) प्रार्यमतलीला। सृष्टि की प्रादि में ईश्वर ने माता | मानते हैं नहीं तो मत के घड़ने वा. पिता के बिदून मनुष्य उत्पन्न कर लों ने तो मन माना जो चाहा घ. दिये तो बहुत मी स्त्रियों को यह ह दिया हैमौका मिलेगा कि वह कुत्सित गर्भ स्वामीजी ईमाई मत को खंडमकरहने पर परदेश में चली जाया करें रते हुए ईसामसीहको उत्पत्ति बिना और बच्चा पैदा होने के पश्चात प्र- पिताके होने पर तो लिख गये कि मति क्रिया ममाप्त होने पर बालक "जो परमेश्वर भी नियम को उलटा को गोद में लेकर घर आजाया करें पनदा करे तो उस की प्राज्ञा को ओर कहदिया करें कि परमेश्वर ने यह कोई न माने” परन्नु स्वयं नियमके बच्चा श्राप मे आप बमाकर हमारी विरुद्ध बिना माता और पिता के गोदी में देदिया इसके अतिरिक्त मनुष्यकी उत्पत्तिको स्थापित करते यह बड़ा भारी उपद्रव पैदा हो म- ममय स्वामीजी को विचार न हुआ क्ता है कि जो स्त्रियां अपना व्यभि- कि ऐसे नियम को तोड़ने वाले परचार छिपानेके वास्ते उत्पन्न हुवे या- मेश्वर के बाक्यों को जो बंद में निखे लक को बाहर जंगलमें फिंकवा देनी हैं कौन मानेगा? पर स्वामीजीने तो हैं और तुम बाना की सूचना होने जांच लिया था कि मंत्रारके मनष्यों पर पुनिम बही भारी तहकीकात क- की प्रकृति ही ऐमी है कि वह म रली है कि यह वाम्नक किमया है : मिटान्तोंको जांचते हैं और न ममस्वामी जी का सिद्धान्त मानने पर। झने और सीखने की कोशिश करते लिम को कोई भी तहकीकात की है वरन जिमकी दो चार छाह्यवाते जहरत न रहै और यह ही निग्न देना अपने मन न गती मानस हुई असही पाहा करेगा कि एक बालक बिना के पीछ ही लेते हैं और उमकी मब माबाप के ईश्वर का उत्पन्न किया बातों में हां हां' मिन्नानेको तैयार हुमा प्रमुक जंगल में मिला-डपही | हो जाते हैं -स्वामी जी ग्यारहवें समुन्ना प्रकार के और सैकड़ों उपद्रव उठ | म में स्नियने हैं "यह आर्यावर्त देश खड़े होंग। यह तो उमही समय तक एमा है जिसके सदृश भगोनमें दूसरा कशन है जब तक राजा और प्रजा कोई देश नहीं है इसी लिये इम गण इस प्रकार के असम्भव धार्मिक भूमि का नाम सुवर्ण भूमि है क्योंकि मिटान्तों को अपने मामारिक और | यही सुवर्णादि रत्रोंको उत्पन्न करती पारिका का में समम्मच ही । इमी लिये मष्टि की प्रादिमें आर्यPage Navigation
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