Book Title: Aryamatlila
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 6
________________ - (२) आर्यमतलीला। मुस्लाम में लिखते हैं कि परमेश्वर | हने के इस पौराणिक कथन को तो ने सृष्टि की आदि में सैकड़ों और | असम्भव लिख दिया और ऐसी बाहजारों जवान मनाय पैदाफर दिये- | तों के मानने वालों को आंख के अंधे हंसी आती है स्वामी जी के इस लेख । बना दिया परन्तु इससे भी अधिक को पढ़कर और दया भाती है उन बिना माता पिता के और विना भोले मनष्यों की बुद्धिपर जो स्वामी | गर्भ के ही सैकडों और हजारों मन जी के मत को ग्रहण करते हैं क्योंकि | प्यों की उत्पत्ति के मिद्धान्त को स्वयं सृष्टि नियम और प्रत्यक्षादि प्रमाण अपने चेलों को सिखाया। आश्चर्य है से स्पष्ट सिद्ध होता है और स्वामी कि स्वामी जी ने अपने चेलों को जी स्वयं मानते हैं कि बिना माता जिन्हों ने स्वामीजी की ऐमी प्रमपिता मनष्य उत्पन्न नहीं होसक्ता / म्भव बातें मानली आंखका अंधा है। ईमाईयों ने इस सष्टि नियम को क्यों न कहा ? स्वामी जी अपने दिल प्राधा तोड़ा अर्थात् बिना पिता के में तो हंमते होंगे कि जगत् के लोम केवल माता से ही ईसामसीह की कैसे मुर्ख हैं कि उनको कैसी ही अपैदायश बयान की, जिस पर स्वामी सम्भव और पर्यापर विरोधकी बातें दयामन्द जी इतने क्रोधित हुवे कि मिखा दी जावें वह मध वातों को ऐसी बात मानने वालोंको मूर्ख और स्वीकार करने के वास्ते नय्यार हैं-- जंगली बताया परन्त आपने सष्टि के तमाशे की बात है कि मष्टि नियम के सम्पूर्ण विरुद्ध बिना माता | को आदि में बिना माता पिता के और बिना पिता के सृष्टि की प्रादि | मैकड़ों जवान मनुष्य आपमे प्राप में सैकडों और हजारों मनप्यों के | पैदा होकर कदने लगे होंगे । जवान पैदा होने का सिद्धान्त स्थापित कर | पैदा होनेका कारण स्वामीजी ने यह दिया और किंचित् भी न मनाये लिखा है कि यदि वामक पैदा होते महीं मालूम यहां स्वामी जी प्रत्य- तो उनको दृध कौन पिनाता कौन क्षादि प्रमाणों को किम प्रकार भृम्न उनका पालन करता? कोंकि कोई गये और क्यों उनको अपनी बुद्धि माता तो उनकी थी ही नहीं परन्तु पर क्रोध न पाया और क्यों उन्हों स्वामी जी को यह रयान न पाया ने ऐमे वदों को झटा न टहराया कि जब उनकी उस तिबिना माता जिनमें ऐमे गपोहे निखे हुवे हैं। स्वा- के एक अमम्भव पति से हुई है तो मी जी ने कुन्ती को सूर्य से गर्भ र- । उनका पालन पोषण भी असम्भव

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