Book Title: Aryamatlila
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 5
________________ श्रीर वेद * बन्देशिमबरम् * आर्यमत लीला। [क-भाग गलियों का काम है सभ्य विद्वानों सत्यार्थ प्रकाश का नहीं। भला जो परमेश्वर का नि यम है उसको कोई तोड़ सकता है? जो परमेश्वर भी नियम को उलटा पुजटा करे तो उस की श्राज्ञा को | स्वामी दयानन्द सरस्वतीने सत्या कोई न मागे और वह भी सर्वज्ञ चे प्रकाश नामक पुस्तक के तेरहवें और निर्धम है। ऐसे तो जिस २ समुन्नाम में ईमाई मत खंडन करते कमारिका के गर्भ रह जाय तब सब हुवे ईसाई मत की पुस्तक मती र कोई ऐसे कह सकते हैं कि इममें गर्भ . चित पुस्तक का लेख इस प्रकार का रहना ईश्वर की ओर से है और | दिया है: झूठ मूठ कह दे कि परमेश्वर के इतने "यीशुखीष्ट का जन्म इम रीति से मुझको स्वप्न में कह दिया है कि यह कि उसकी माता मरियम की गर्म परमात्माकी भोरसे है-जैसा यह | | यूसफ मे मंगनी हुई थी पर उनके इ. असम्भव प्रपंच रचा है वैसा ही मूर्य कर्ट होनेके पहिल ही वह देख पडी । से कुंती का गर्भवती होना भी पुराकि पवित्र शात्मा से गर्भवती है। णोंमें असंभव लिखा है-ऐमी २ बातों देखो परमेश्वर के एक दूतने स्वप्न में | को प्रांख के अंधे गांठ के पूरे होग उसे दर्शन दे कहा-हे दाऊद के स- मान कर भमजाल में गिरते हैंन्तान यूमफ तू अपनी स्त्री मरियम इसही प्रकार स्वामी दयानंदजी को यहां लानेमे मत डर क्योंकि उस आठवें समुल्लाम में लिखते हैं। को जो गर्भ रहा है सो पवित्र आत्मा “जसे कोई कहे कि मेरे माता पिता न ये ऐसे ही मैं उत्पन्न हुवा हैं ऐसी नन्द मामकार लिख कर स्वामी दया- | असंभव वात पागल लोगों की है। दिया है:- इसका खंडन इम प्रकार | स्वामी जी महाराज दूसरे मतों के "इन बातों | खंडन में तो ऐसा कह गये परंतु शोक ........ को कोई विद्वान नहीं | है कि स्वामीजी को अपने मवीन प्रमाण और मधिकि जो प्रत्यक्षादि | मत में भी ऐसी ही वरन इममे भी का मानन क्रमसे विरुद्ध हैं | अधिक असम्भव घातें लिखनी पडी * मूर्ख मनुष्य जं. | हैं-स्वामीजी इसही सरह भाठा स

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