Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust View full book textPage 8
________________ संपादकीय मूलतः ब्रह्मांड के छः अविनाशी तत्त्व हैं, उन तत्त्वों में अंदर ही अंदर किस प्रकार के नैमित्तिक असर होते हैं और संसार का रूट कॉज़ उत्पत्ति, ध्रुव और विनाश के गुह्यतम रहस्य एवं इस रूपी जगत् का मूल कारण परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से निकली, बीस-बीस साल से टेपरिकॉर्ड में टेप की गई वाणी का यहाँ पर चौदहवीं आप्तवाणी (भाग-१) में संकलन किया गया है। इसमें संसार का, रूपी जगत् का, रूट कॉज़ कोई ईश्वर या ब्रह्मा नहीं है लेकिन यह मुख्य छ: अविनाशी तत्त्वों में से जड़ तत्त्व और चेतन तत्त्व के सामीप्य भाव की वजह से उत्पन्न होने वाले विशेष भाव के कारण है। (विभाव से संबंधित पूरी वैज्ञानिक समझ खंड-१ में समाविष्ट की गई है।) शुद्ध चेतन तत्त्व का स्वभाव है कि वह खुद के स्वभाव में रह सकता है और उससे विशेष भाव भी हो सकता है। स्वभाव में रहकर विशेष भाव होता है। यह विशेष भाव खुद जान-बूझकर नहीं करता है लेकिन साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स, संयोगों के दबाव के कारण हो जाता है और मुख्य रूप से इसकी नींव में अज्ञानता तो रही हुई है ही। इस विशेष भाव में सर्व प्रथम 'मैं' (अहम्) उत्पन्न होता है। वह फर्स्ट लेवल का विशेष भाव है। उस 'मैं' में से (फर्स्ट लेवल के विशेष भाव में से) दूसरा, सेकन्ड लेवल का विशेष भाव उत्पन्न होता है, रोंग बिलीफ से, और वह है अहंकार। 'मैं चंदू हूँ', वह मान्यता ही अहंकार है (सेकन्ड लेवल का विशेष भाव)। फिर वह अहंकार सभी कुछ टेक ओवर कर लेता है। विशेष भाव में से विशेष भाव उत्पन्न होता रहता है। नए का जन्म होता है और पुराना खत्म हो जाता है। चेतन तत्त्व के विशेष भाव से जड़ तत्त्व के विशेष भाव में पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) बनता है। तब तक कोई हर्ज नहीं है लेकिन फिर अज्ञान प्रदान से 'मैं' को 'मैं पुदगल हूँ', ऐसी मान्यता, रोंग बिलीफ उत्पन्न हो जाती है। 'मैं कर रहा हूँ', ऐसी रोंग बिलीफ उत्पन्न हो जाती है और क्रोध-मानPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 352