Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 7
________________ सिद्धांत प्राप्त करवाती है आप्तवाणी प्रश्नकर्ता : आप्तवाणी के सभी भाग तीन बार पढ़े हैं, उससे कषाय मंद हो गए हैं। दादाश्री : ये आप्तवाणियाँ ऐसी हैं कि इन्हें पढ़ने से कषाय खत्म हो जाते हैं। केवलज्ञान में देखकर निकली हुई वाणी है। बाद में लोग इसका शास्त्रों के रूप में उपयोग करेंगे। __और इसमें हमारा कभी भी, सिद्धांत में बदलाव नहीं आया है। सैद्धांतिक ज्ञान कभी भी मिलता ही नहीं है। वीतरागों का जो सिद्धांत है न, वह उनके पास ही था। शास्त्रों में सिद्धांत पूरी तरह से नहीं लिखा गया है। क्योंकि सिद्धांत शब्दों में नहीं समा सकता। उन्हें सिद्धांतबोध कहा गया है, ऐसा बोध जो सिद्धांत प्राप्त करवाए लेकिन वह सिद्धांत नहीं कहलाता जबकि अपना तो यह सिद्धांत है। खुले तौर पर, दीये जैसा स्पष्ट । कोई कुछ भी पूछे, उसे यह सिद्धांत फिट हो जाता है और अपना तो एक और एक दो, दो और दो चार, ऐसा हिसाब वाला है न, ऐसा पद्धतिबद्ध है और बिल्कुल भी उल्टा-सीधा नहीं है और कन्टिन्युअस है। यह धर्म भी नहीं है और अधर्म भी नहीं है। हमारी उपस्थिति में हमारी इन पाँच आज्ञाओं का पालन किया जाए न, या फिर अगर हमारा कोई अन्य शब्द, एकाध शब्द लेकर जाएगा न, तो मोक्ष हो जाएगा, एक ही शब्द! इस अक्रम विज्ञान के किसी एक भी शब्द को पकड़ ले और फिर उस पर मनन करने लगे, उसकी आराधना करने लगे तो वह मोक्ष में ले जाएगा। क्योंकि अक्रम विज्ञान एक सजीव विज्ञान है, स्वयं क्रियाकारी विज्ञान है और यह तो पूरा ही सिद्धांत है। किसी पुस्तक के वाक्य नहीं हैं। अतः यदि कोई इस बात का एक भी अक्षर समझ जाए न, तो समझो वह सभी अक्षर समझ गया! अब यहाँ पर आए हो तो यहाँ से अपना काम निकालकर जाना, पूर्णाहुति करके!

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