________________
समन्वय
करता है, उसे नीचे उतार लेना चाहता है । कोई भी व्यक्ति भगवान् की ऊंचाई तक पहुंचना नहीं चाहता, किन्तु भगवान् को अपने समान नीचे धरातल पर ले आना चाहता है । यही विकृति है । यही मिथ्या दृष्टिकोण है । यदि यह दृष्टिकोण बदल जाए और सत्य को अखंड और शाश्वत नियम मानकर चलें फिर दुःखी होने का कोई रास्ता ही नहीं बचता ।
२९
1
सत्य का महान् नियम है कि जगत् में कुछ भी सर्वथा समान नहीं है और सर्वथा असमान भी नहीं है । सर्वथा कोई विरोधी नहीं है और सर्वथा कोई अविरोधी भी नहीं है । हम इस नियम के आधार पर खोज कर सकते हैं। हमें जीवन का सुन्दर राजमार्ग प्राप्त होता है | साधना का भी बहुत सुन्दर मार्ग प्राप्त होता है फिर हम चोर में छुपे हुए साहूकार को और साहूकार में छुपे हुए चोर को देखें । कौन है चोर और कौन है साहूकार ?
एक प्रसंग है। जीसस ने भीड़ से कहा- वही व्यक्ति इस स्त्री को पत्थर मार सकता है जो शुद्ध है, विकारग्रस्त कभी नहीं हुआ हो । किसी का हाथ नहीं उठा पत्थर मारने के लिए। जीसस के वाक्य ने सबको झंकृत कर दिया अपने भीतर छुपे हुए चोर को देखने के लिए, अपने भीतर छुपे हुए शैतान को देखने के लिए। किसी का हाथ नहीं उठा पत्थर मारने के लिए। सब अवाक् रह गए ।
अनेकान्त की सार्थकता
यदि हम अपने भीतर छुपे हुए चोर को और अपने भीतर छुपे हुए साहूकार को पहचान सकें और उस पहचान के बाद भीतर के चोर को सुलाकर साहूकार को जगा सकें तो अनेकान्त की सार्थकता हमारे व्यवहार में हो सकती है । इसीलिए ध्यान और साधना चल रही है । हम इसमें संलग्न हैं । ध्यान के बिना अनेकान्त का मार्ग स्पष्ट और प्रशस्त नहीं होता । ध्यान इसीलिए कर रहे हैं कि जो पर्याय अव्यक्त पड़े हैं, जो साहूकार सोया पड़ा है, उस साहूकार को जगा सकें, उन पर्यायों को व्यक्त कर सकें। जो चोर जागा हुआ है, उसे सुला सकें, मुख्य को गौण कर सकें और गौण को मुख्य कर सकें । जो कुर्सी पर बैठा है उसे नीचे बिठा सकें और जो नीचे बैठा है उसे कुर्सी पर बिठा सकें ।
एक विज्ञापन निकला – हमारी कंपनी में कुछ नियुक्तियां करनी हैं, जो सर्विस करना चाहें वे प्रत्यक्ष आकर मिलें । अनेक उम्मीदवार आए । मैनेजर ने उम्मीदवारों से पूछा- कौन क्या होना चाहता है ? किसी ने कहा- मैं चपरासी होना चाहता हूं । मैं क्लर्क होना चाहता हूं। मैं निरीक्षक या इंजीनियर होना चाहता हूं । सबको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org