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अनेकान्त है तीसरा नेत्र
न उलझें । जानने का अर्थ यह नहीं है कि आदमी प्रयत्न नहीं करता, पुरुषार्थ को छोड़ देता है । वास्तव में जानने वाला व्यक्ति ही सही निर्णय लेता है, सही प्रयत्न करता है । अतीत और भविष्य में उलझने वाला व्यक्ति ज्यादा प्रयत्न भी नहीं कर सकता और सही निर्णय भी नहीं ले सकता ।
एक व्यापारी था । उसने सुना कि व्यापार में घाटा हो गया है। यह सुनते ही वह दुःखी हो गया, निराश हो गया, चिन्ता में डूब गया, सिर पर हाथ रखकर बैठ गया। इसका अर्थ हुआ कि वह व्यक्ति घटना को भोगने लग गया ।
एक व्यक्ति ने जाना कि व्यापार में घाटा हो गया है। उसने जान लिया, पर इस घटना के साथ बहा नहीं । वह सही निर्णय लेगा, सही प्रयत्न करेगा और जीवन में सफल हो जाएगा ।
एक व्यक्ति को व्यापार में बहुत लाभ हुआ। वह घटना के साथ बह गया और इतना बहा कि खुशी में प्राणों से हाथ धो बैठा ।
बहुत हर्ष भी दुःख देने वाला होता है और बहुत शोक भी दुःख देने वाला होता है ।
गुजरात की एक घटना है। एक गरीब ने लाटरी में पांच रुपये लगाए । लाटरी में पांच लाख रुपये आ गए। अधिकारी ने सोचा- अब इसकी सूचना उस गरीब को कैसे दी जाए। कहीं हर्षातिरेक से वह पागल न हो जाए, मर न जाए। उसने एक बुद्धिमान डॉक्टर से परामर्श किया। डॉक्टर ने कहा- मैं उसे संभाल लूंगा । सब उस गरीब के घर गए। पूछा- कहो क्या हाल-चाल है ? वह बोला — दुःख से जीवन-यापन कर रह हूं। मेरे जीवन में सुख कहां है ? डॉक्टर ने कहा- यदि तुम्हें कहीं से दस हजार रुपये मिल जाएं तो ?
'अरे कहां हैं मेरे नसीब में ! यदि ऐसा हो जाए तो आधा आपको दे दूंगा।' 'यदि पचास हजार मिल जाएं तो ?'
'पचीस हजार आपको दे दूंगा।' 'एक लाख मिल जाएं तो !' 'पचास हजार आपको दे दूंगा ।' 'यदि दो लाख मिल जाएं तो ?' 'एक लाख आपको दे दूंगा।' 'यदि पांच लाख मिल जाएं तो ?' 'ढाई लाख आपको दे दूंगा ।'
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