Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 155
________________ १५४ अनेकान्त है तीसरा नेत्र उन्होंने नया रास्ता खोजा। यह परम आशा का दृष्टिकोण है, निराशा का नहीं। कठिन है साधना का मार्ग साधना का मार्ग बहुत कठिन मार्ग है। यह निश्चित है कि निराश व्यक्ति इसमें आ नहीं सकता और आलसी व्यक्ति इसमें सफल नहीं हो सकता। इसमें बहुत परिश्रम, प्रयत्न और पराक्रम करना पड़ता है। यह मानना भ्रांति है कि ध्यान करके आंखे बन्दकर बैठ जाना निठल्लापन है। ध्यान में जितना पराक्रम चाहिए उतना पराक्रम खेती में लगाने की जरूरत नहीं होती। एक आदमी हल जोतता है। वह मजे से चलता है, गीत गाता जाता है और आजकल का किसान तो ट्रांजिस्टर लटकाये चलता है । वह गाने सुनता है, साथ-साथ गाता भी है। हल जोतने, बीज बोने में बहुत श्रम करने की जरूरत नहीं है। किन्तु ध्यान करने वाले व्यक्ति को बहुत श्रम करना पड़ता है। यह कोई मीठी बातें करना नहीं है। यह हमारे जीवन की सार्थकता है। राजनेता चिकनी-चुपड़ी बातें करता है, किन्तु ध्यान करने वाला वैसा नहीं कर पाता। वह सार्थक बात ही कहता है । __ एक भाई ने अपने मित्रों से कहा-वह बहुत मीठी बातें करता है, उसकी बातें सुनने में बड़ी मीठी लगती हैं, पर होती हैं सारी की सारी बेमानी। वे बिना अर्थ की होती हैं । जो मीठी बातें करता है, पर अर्थ कुछ भी नहीं होता, वह राजनेता होता साधना का मार्ग मीठी बातों का मार्ग नहीं है। वह अर्थहीन बातों का रास्ता नहीं है। साधना की बातें कड़वी कोती हैं, पर वे हैं सार्थक । इसीलिये लोगों को वह मार्ग निराशा का मार्ग लगता है। साधना का मार्ग है जीवन की शांति का और मन की शांति का मार्ग । जीवन और चित्त की शांति सम्पदा और समृद्धि से प्राप्त नहीं होती । इस शांति का कोई विकल्प नहीं है । इसका एकमात्र विकल्प है-चित्त की एकाग्रता, मन की चंचलता की समाप्ति और स्नायु-संस्थान तथा ग्रंथियों की क्रिया में परिर्वतन । इससे मन में आने वाले विकल्प तथा उर्मियां शांत हो जाती हैं। विकल्प और उर्मियां प्रतिक्रियाएं पैदा करती हैं, बेचैनी पैदा करती हैं। इस मार्ग को अवरुद्ध कर देना-इससे बड़ा शांति का कोई दूसरा मार्ग नहीं हो सकता। शरीर-वाणी-मन और आहार एक तत्व के दो कोण बन जाते हैं, दो भाषाएं बन जाती हैं, दो चिंतन बन जाते हैं। अनेकान्त की दृष्टि से विचार करने पर दो तथ्य हमारे सामने आते हैं। साधना में सबसे पहले उपयोग होता है शरीर का, वाणी का और मन का और फिर उपयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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