Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 160
________________ १५९ आशावादी दृष्टिकोण उसने राजकुमार से कहा- इतना कीमती हार तुमने नट को कैसे दे दिया ? राजकुमार बोला-राजन् ! इसमें बहुत बड़ा रहस्य है। सही बात बता दूं । मेरे मन में एक भावना बहुत दिनों से काम कर रही थी कि अब राजा बूढ़ा हो गया है, मर जाए तो मैं राजा बन जाऊं। कभी-कभी यह विचार भी आता था कि राजा को, बाप को, मार कर राजा बन जाऊं। किन्तु अभी-अभी नट के मुंह से जो यह वाक्य सुना कि अरे ! रात बीत चुकी है, अब तो थोड़ा-सा समय बचा है, ऐसा क्यों सोच रहा है। उससे मेरी सारी दृष्टि बदल गई। मैंने सोचा-ओह, मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है। वह मेरा गुरू है। इसने मेरी दृष्टि साफ कर दी। यह हार इसके सामने मूल्यहीन है।' राजकुमारी से पूछने पर उसने कहा-“मै इतनी बड़ी हो गई। यौवन में प्रवेश कर चुकी हूं । आपने अभी तक मेरे विवाह के विषय में प्रयत्न नहीं किया। मेरे मन में आया कि मैं किसी पुरुष के साथ धन लेकर भाग जाऊं। पुष को भी मैंने ढूंढ लिया। भागने की तैयारी में ही थी कि आज नट के वाक्य ने मेरी आंखें खोल दी । मैंने सना-अब समय थोड़ा बचा है। सारा बीत चुका है। मुझे दृष्टि मिली। उससे मैं बच गई। हार से अधिक मूल्यवान् है मेरी यह स्थिति ।" राजा ने साधु से पूछा- तुमने बहुमूल्य रत्नकंवल क्यों दे दिया? राजकुमार को राज्य चाहिए था और राजकुमारी को शादी की चाह थी, पर तुम्हें क्या चाहिए था? साधु बोला-साधना करते-करते थक गया। लगा कि मिला कुछ भी नहीं घर जाने की बात सोच रहा था। परिवार का मोह जाग गया। समय की टोह में था किन्तु जैसे ही ये शब्द—“मा प्रमादी निशात्यये"-मेरे कानों में पड़े तो लगा कि पचास वर्ष तो बीत चुके हैं, अब थोड़ा-सा जीवन शेष है इसमें यह अनर्थ क्यों करूं? अब तो सवेरा होने की बात है । साधना का फल मिलने ही वाला है। दृष्टि बदल गई। मन स्थिर हो गया। ऐसा अनुभव हुआ कि यह नट मेरा महान् उपकारी है। इसने मुझे हस्तावलम्बन दिया हैं, संयम से गिरते हए को बचाया है, हाथ का सहारा दिया है। इस परिवर्तन के समक्ष मेरा रत्नकंबल मूल्यहीन है। ___ “काल करै सो आज कर"-यह बात भी अनेक घटनाओं की प्रेरक बनती है तो "मा प्रमादी निशात्यये" वह सूत्र भी अनेक घटनाओं का प्रेरक बनता है। प्रत्येक कथन अनेकान्त के आसपास आकर प्रणत हो जाता है। दोनों बातें होती हैं। हमारी दृष्टि स्पष्ट होती है तो ध्यान का बहुत बड़ा अर्थ है, सार्थकता है। अध्यात्म चेतना को जगाने का बहुत बड़ा अर्थ है । इसे कोई निर्मलदृष्टि वाला व्यक्ति निराशावादी दृष्टिकोण नहीं कह सकता। जिसकी दृष्टि साफ नहीं होती वह ध्यान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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