Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 163
________________ १६२ अनेकान्त है तीसरा ने आगे है। बदलने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहे तो आखिरी बिन्दु पर पहुंचा जा सकता है। व्यक्तित्व का निरन्तर रूपान्तरण होता रहे। हमारी दृष्टि निर्मल बनती रहें और अनेकान्त का जीवन-दर्शन हमारे सामने रहे। हम आग्रह में न फंसे । हम एकांगी दृष्टि में न जाएं और किसी भी बात को पकड़ कर न बैठें, किन्तु प्रत्येक बात को समझने में सामंजस्य, सापेक्षता, समन्वय और सन्तुलन के विराट् दृष्टिकोण को अपनाएं। जीवन की समुचित दृष्टि अध्यात्म का बहत बड़ा फलित है। यह अध्यात्म के बिना उपलब्ध नहीं होती। अध्यात्म की साधना जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे अनेकान्त का जीवन-दर्शन, जो बीज रूप में उपलब्ध हुआ है, विराट् वृक्ष बनकर हमारे सामने लहराता है और तब जीवन-सौरभ चारों दिशाओं में महकने लग जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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