Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 161
________________ १६० अनेकान्त है तीसरा नेत्र तप, संयम को निराशावादी दृष्टिकोण मानेगा। ज्ञान की दो सीमाएं ____ ज्ञान की दो सीमाएं हैं- एक है बुद्धि की सीमा और एक है अनुभव को सीमा। साधना, ध्यान और तपस्या का समूचा मार्ग अनुभव का मार्ग है। यह बुद्धि का मार्ग नहीं है । इसलिए बुद्धिवादी का तर्क इसके विपरीत होता है तो कोई आश्चर्य नहीं है। बुद्धि का काम है तर्क करना। ध्यान और संयम की साधना करने वाला बुद्धि और तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। वह उसका मार्ग ही नहीं है। उसका मार्ग अनुभव का मार्ग है उसकी कसौटी दूसरी होगी। जिस व्यक्ति ने अनुभव की कसौटी पर कस कर देखा, अनुभव का स्वाद जिसने चखा, उसके लिए इससे परम मार्ग कोई नहीं हो सकता। यह मार्ग ही नहीं, परम मार्ग है । यह निराशा नहीं, किन्तु परम आशावादी दृष्टिकोण है । जो बुद्धि की कसौटी पर कसेगा, उसे संभवतः यह निराशावादी दृष्टिकोण लग सकता है। हमें बुरा नहीं मानना चाहिए और आश्चर्य भी नहीं करना चाहिए। तर्क अपना मार्ग होता है। तर्क बहुत उलझाता है। वह उलझाने वाली बात होती है। अनुभव की बात दूसरी बन जाती है। ____ एक हैड क्लर्क ने दूसरे क्लर्कों से कहा--'आफिस के समय में हजामत कराने चले जाते हैं और बहुत समय लग जाता है। आफिस के समय में हजामत न किया करें ।' एक क्लर्क ने कहा-'जब आफिस के समय में बाल बढ़ते हैं तो वे आफिस के समय में कटवाए भी जा सकते हैं । आप ऐसा उपाय करें कि आफिस के समय में बाल न बढ़े तो हम आफिस के समय में बाल नहीं कटवाएंगे।' यह तर्क की भाषा है, बुद्धि की भाषा है। जो लोग तर्क और बुद्धि की सीमा में रहते हैं, उनकी यह भाषा होती है। तीन सीमाएं तीन सीमाएं हैं। एक है इन्द्रिय-चेतना की सीमा। दूसरी है मनस्वेतन की सीमा। तीसरी है बौद्धिक चेतना की सीमा। हमने इन तीनों सीमाओं का अनुभव किया है । चौथी सीमा भी है। वह है अनुभव चेतना की सीमा। जब तक अनुभव चेतना की सीमा में प्रवेश नहीं होता जब तक सारी बातें ऐसी ही लगती हैं। यह निश्चित है कि जिस व्यक्ति ने ध्यान का अनुभव नहीं किया वह अनुभव की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। उसका प्रवेश सर्वथा निषिद्ध है। अभ्यास की सार्थकता मुझे अनुभव हुआ कि जो लोग पहले दिन ध्यान में बैठते हैं और दसवें दिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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