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आशावादी दृष्टिकोण
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भारतीय लोगों ने दूसरे रास्ते–शान्ति के रास्ते का चुनाव किया। यह तो निश्चित बात है कि गरीब आदमी अच्छे रास्ते का चुनाव नहीं कर सकता ।गरीब आदमी त्याग और संयम के रास्ते का चुनाव नहीं कर सकता। जब गरीबी ही नहीं जाती तो वह आदमी बड़ी बात कैसे कर सकता है ? उस बड़े रास्ते की बात वही आदमी कर सकता है जो सम्पदा और समृद्धि के शिखर पर पहुंच जाता है। वहां पहुंचने पर जब उसे कुछ भी सारवान् वस्तु उपलब्ध नहीं होती तब सोचता है कि दूसरा रास्ता भी होना चाहिए। गरीब आदमी से ऐसी आशा न रखें।
आज का भारतीय फिर गरीब हो गया है। आज उससे यह आशा रखी जाए कि वह नैतिक बने, ईमानदार रहे, प्रामाणिक बने, आध्यात्मिक बने, यह आशा दुराशा होगी। ऐसा संभव नहीं है। इसकी संभावना में बहुत बड़ी कठिनाइयां हैं। ये कठिनाइयां उन लोगों के लिए सरल होती हैं जो समृद्धि के शिखर पर पहुंच जाते
__आज के पश्चिम् जगत् का आदमी जितना जल्दी आध्यात्मिक बन सकता है, जितना जल्दी ध्यान के प्रति आकृष्ट हो सकता है, उतना जल्दी भारत का आदमी आकृष्ट नहीं हो सकता । कारण बहुत ही स्पष्ट है कि वे पाश्चात्य लोग पदार्थ की प्रकृति को समझ चुके हैं। वे पदार्थों का भोग कर चुके हैं और उस शिखर का स्पर्श कर चुके हैं, जहां पहुंचने पर उन्हें प्रतीत हुआ कि अब आगे नहीं जाया जा सकता, अब आगे का रास्ता बन्द है। यहीं उसकी इति है। वे बहुत जल्दी आध्यात्मिक बन सकते हैं और नए मार्ग का चुनाव कर सकते हैं। पर जो आदमी अभी छोटे में उलझा हुआ है वह बड़ी बात नहीं कर सकता। मा अप्पेण लुपहा बहुं
भगवान् महावीर की साधना का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है-'मा अप्पेण लुपहा बहुँ।' थोड़े के लिए बहुत को मत गंवाओ। यही भारतीय दर्शन का मुख्य सूत्र बन गया । कालीदास ने भी अपने काव्यों में इसका उच्चारण किया है। पूछा गया पंडित कौन होता है? पंडित वह होता है जो थोड़े के लिए बहुत को नहीं खोता। वही बुद्धिमान होता है।
राजा संन्यासी के पास गया। उसने उस संन्यासी की बहुत ख्याति सुनी थी। पास में जाकर उसने वन्दना की । उसने देखा, निकटता से देखा कि संन्यासी बहुत बड़ा तपस्वी है, प्रभावी है। हाथ जोड़कर राजा बोला-'धन्य हैं आप। धन्य है आपके संयम और त्याग को। धन्य है आपकी तपस्या। कितना बड़ा त्याग है
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