________________
स्वतंत्रता
ये सब अनहोनी बातें नहीं हैं, ऐसी संभावनाएं घटी हैं। इन सबको नकारना दुःसाहस ही कहा जा सकता है।
अनेकान्तदृष्टि सत्य के प्रति समर्पण की दृष्टि है । पर्यायों का जगत् अनन्त है। अनेकान्त के बिना उस सच्चाई के जगत् में प्रवेश नहीं किया जा सकता। किसी भी सच्चाई को सर्वथा अस्वीकार नहीं करना चाहिए और सर्वथा स्वीकार भी नहीं करना चाहिए। हम उसे स्वीकार करें जो हमारे वर्तमान की सच्चाई है और अस्वीकार करें उसको जो वर्तमान की सचाई नहीं है, किन्तु इस अपेक्षा के साथ कि यह भी कभी सच्चाई हो सकती है, स्वीकृत हो सकती है । इस द्वार को कभी बन्द न होने दें। बुद्धि का सीमाबोध आवश्यक
आचार्य भिक्षु अनेकान्त के पुरस्कर्ता थे । एक बार एक व्यक्ति ने कहा-गुरुवर । यह सत्य समझ में नहीं आता, गले नहीं उतरता, मैं इसे कैसे स्वीकार करूं? आचार्य भिक्षु ने कहा-तुम सर्वज्ञानी या ब्रह्मज्ञानी तो नहीं बन गए कि सारी बातें समझ में
आ जाएं। तुम अपनी बुद्धि की सीमा को नहीं जानते। उसका सीमाबोध होना चाहिए। जिसकी जितनी बुद्धि होती है, उतनी सीमा तक ही वह समझ पाता है। यदि एक घड़ा कहे कि मैं नहीं मान सकता कि विशाल सागर हो सकता है। कल्पना ही नहीं कर सकता। जब मेरे में इतना पानी नहीं समा सकता तो कैसे मानूं कि दूसरे में उतना पानी समा सकता है ? घड़े की अपनी सीमा है और सागर की अपनी सीमा है। जो सागर में समा सकता है वह गागर में नहीं समा सकता। किन्तु यदि गागर अपनी सीमा को नहीं जानते हए समद्र के अस्तित्व को नकार दे तो वह कोई सच्चाई नहीं होगी। बुद्धि सबकी समान नहीं होती। बुद्धि में न समाने के कारण सच्चाई को सर्वथा नकार देना नासमझी है, सत्य के साथ खिलवाड़ है।
- आचार्य भिक्षु ने इसका समाधान इन शब्दों में दिया-जो तुम्हारी बुद्धि में समाए उसे तुम यह कह कर मान लो कि यह बात बुद्धिगम्य है । यदि तुम्हारी बुद्धि में न समाए तो कहो कि यह बात मेरी समझ में नहीं आई, किन्तु मेरे से जो अधिक बुद्धिमान हैं, वे ऐसा कहते हैं, इसलिए मैं इसे स्वीकार करता हूं। इससे कठिनाई भी नहीं बढ़ेगी और तुम असत्य के दोषी भी नहीं बनोगे।
मनुष्य को दोनों कोणों को साथ लेकर चलना चाहिए। एक कोण है—बुद्धि की सीमा का, वर्तमान की पर्याय की स्वीकृति का और दूसरा होता है-अनन्त संभावनाओं का । जब ये कोण स्वस्थ होते हैं, दोनों में सामंजस्य और सन्तुलन होता है, दोनों दृष्टियां सापेक्षता के सूत्र से जुड़ी होती हैं तो निर्णय सही होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org