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अनेकान्त है तीसरा नेत्र दूसरी है भोगने की रेखा । भोगने के साथ जब आसन जुड़ता है तो वह भी दुःखदायी बन जाता है। आदमी चाहता है कि आसन करूं, शरीर पुष्ट बने। इतनी शक्ति भर जाए कि अधिक भोग भोग सकू और शक्ति कभी क्षीण न हो। क्या आसन साधना का सूत्र है ? कहां रहा साधना का सूत्र? ऐसा प्राणायाम करूं कि जितना खाऊ हजम हो जाए। योगमुद्रा करूं और अधिक खाया हुआ पच जाए। इस हेतु से प्रेरित होकर वह योगमुद्रा करता है, प्राणायाम करता है। क्या यह प्राणायाम साधना का सूत्र है ? कहां है साधना का सूत्र !यह तो भोग का सूत्र बन गया।
यूनान का बादशाह नीरो भोजन का शौकीन था। जब वह भोजन करने बैठता तब पांच-दस चिकित्सक पास में रखता और मोरपंख अपनी बगल में रखता। अच्छा भोजन डटकर कर लेता और तत्काल मोरपंख से वमन कर लेता । इस प्रकार भोजन करता और वमन कर लेता । यह क्रम दिन में १०-२० बार चलता। चिकित्सक उसका निरीक्षण करते रहते ।
क्या चिकित्सा भी कोई सुख देने वाली बनती है ? क्या आसन और प्राणायाम साधना के सूत्र बनते हैं? इन्द्रियों का संयम, प्रत्याहार आदि क्या साधना के सूत्र बनते हैं? आदमी प्रत्याहार करता है इसलिए कि स्थिरता में न सूझने वाली बात भी सूझ जाए। सट्टे का अंक ज्ञात हो जाए।
आज के विश्व में कितने प्रकार की साधनाएं चलती हैं। कोई पिशाच की साधना करता है, कोई भूत की साधना करता है और कोई कर्णपिशाचिनी की साधना करता है। ये सारी साधनाएं इसलिए की जाती हैं कि भौतिक उपलब्धि हो।
क्या मंत्र साधना का सूत्र है ? नहीं, वह आज भी भौतिक समृद्धि या स्वार्थ को पूरा करने का साधन बना हुआ है। साधना के सूत्र का रहस्य .. हम प्रत्येक पहलू पर अनेकान्तदृष्टि से सोचें। ध्यान, धारणा, एकाग्रता, प्राणयाम, प्रत्याहार, यम, नियम-ये सब साधना के सूत्र नहीं हैं । जब ये जानने के साथ जुड़ते हैं तब साधना सूत्र बनते हैं। जब ये जानने के अभिमुख होते है, तब साधना के प्रेरक बनते हैं। जब ये भोग के अभिमुख होते हैं तब असाधना के सूत्र बन जाते हैं। इनको कभी एकांतिक मूल्य नहीं दिया जा सकता।
साधना का मूल सूत्र है-जानना । यह कभी अनेकान्तिक नहीं होता। जानना, केवल जानना, घटना को भोगना नहीं, यह साधना का सूत्र है। इसके साथ जुड़ने वाला हर कारण साधना का सूत्र बन जाता है । जानो और देखो। श्वास को जानो,
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