Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 124
________________ सन्तुलन १२३ मुक्त, अनियन्त्रित और स्वतंत्र हो जाता है। भगवान् महावीर ने कहा-'कुसले पुण णो बद्धे णो मुक्के।' जो वीतराग हो जाता है, वह किसी नियम से बंधा भी नहीं होता और मुक्त भी नहीं होता। उस पर कोई नियन्त्रण नहीं होता, पर वह अनुशासन से मुक्त नहीं होता। वह न बंधा होता है और न मुक्त । वह बाह्य नियमों से बंधा हुआ नहीं होता और आत्मानुशासन से मुक्त भी नहीं होता। बन्धन लाने वाले सारे बीज उसके समाप्त हो जाते हैं । बंधन लाने वाली सारी वृत्तियां समाप्त हो जाती हैं। उसके लिए नियन्त्रण अपेक्षित नहीं होता। नियन्त्रण को सर्वथा स्वीकार नहीं किया जा सकता और अनियन्त्रण को सर्वथा अस्वीकार नहीं किया जा सकता । एकांगिता स्वीकार्य नहीं हो सकती। कुछ लोग कहते हैं-“वृत्तियों का नियन्त्रण मत करो। इन्द्रियों का नियन्त्रण मत करो। इच्छाओं का दमन मत करो। मुक्त भोग करो। जो मन में आए वैसा करो। एक क्षण ऐसा आएगा कि वृत्तियों से मुक्त हो जाओगे।" यह बात बहुत प्रिय लगती है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि नियंत्रण न हो। मुक्त भोग का प्रचलन हो । किन्तु आज तक का इतिहास बताता है कि जहां स्वच्छंदता बढ़ती है, वहां मनुष्य जाति का पतन होता है । अनियामकता, स्वच्छंदचारिता मनुष्य को आगे नहीं बढ़ाती । अनियन्त्रण की बात उस भूमिका में आती है जहां बाहर से विकार समाप्त हो जाते हैं, बाहर से दोष शांत हो जाते हैं। बाहर में बैठा शत्रु सामने नहीं होता और यह तब होता है जब भीतर का शत्रु शांत हो जाए, भीतर की वृत्तियां शांत हो जाएं । उस स्थिति में बाहर का कुछ बचता ही नहीं। एक ज्ञानी की भूमिका अज्ञानी कैसे निभा सकता है ? बात एक ही है, ज्ञानी उसका एक अर्थ करता है और अज्ञानी उसका दूसरा अर्थ करता है। घटना एक होती है, सिद्धान्त एक होता है, किन्तु ज्ञानी उसको दूसरे अर्थ में लेता है और अज्ञानी उसके दूसरे अर्थ में ग्रहण करता है। प्रज्ञा का जागरण : अहिंसा का विकास एक कथा है। तीन विद्यार्थी एक गुरु के पास शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। गुरु ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। तीनों को एक-एक आटे का मुर्गा देकर कहा-जहां कोई न देखे, वहां उसकी गर्दन को तोड़कर ले आओ । राजकुमार भी गया । उपाध्याय का पुत्र भी गया और नारद भी गया। तीनों मुर्गा लेकर चले गए। राजकुमार जंगल में गया। सोचा-यहां एकान्त है। कौन देखता है ? गर्दन तोड़कर घर आ गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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