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सापेक्ष-मूल्यांकन स्व की परिक्रमा : पर की परिक्रमा ___'स्व' का मूल्यांकन करें और 'पर' का भी मूल्यांकन करें। दोनों का मूल्यांकन करें, पर दृष्टि भिन्न-भिन्न हो। हम अनेकान्त की दृष्टि का पूरा उपयोग करें । हमारी यह बहुत बड़ी भूल हुई कि हमने अनेकान्त को तत्त्ववाद की कारा में जकड़ दिया। अनेकान्त साधना का तत्त्व है । वह तर्कशास्त्र का नियम नहीं है, तार्किक प्रणाली नहीं है। यह शुद्ध चैतन्य का अनुभवमात्र है। जिस व्यक्ति ने चित्त को निर्मल करने का प्रयत्न किया वह अनेकान्तवादी नहीं हो सकता, अनेकान्त की दृष्टि उसे उपलब्ध नहीं - हो सकती। अनेकान्तदृष्टि शुद्ध आध्यात्मिक व्यक्ति को ही उपलब्ध हो सकती है। जिसने राग-द्वेष को कम करना सीखा है, जिसमें आग्रह और पक्षपात नहीं है, वही अनेकान्तवादी हो सकता है । जिसने 'स्व' की परिक्रमा करना सीख लिया है, वही अनेकान्तवादी हो सकता है। जिसने आज तक 'पर' की परिक्रमा की, वह कभी अनेकान्तवादी नहीं हो सकता।
पुरानी कहानी है । शिव ने अपने पुत्रों कार्तिकेय और गणेश से कहा—सारे संसार की परिक्रमा कर आओ। जो पहले पहुंचेगा, वह पुरस्कृत होगा। कार्तिकेय शक्तिशाली था। वह अपने वाहन पर बैठा और संसार की परिक्रमा करने चल पड़ा। गणेश भारी-भरकम था उसका वाहन था चूहा। सोचा-“पुरस्कार जीतना है, पर शर्त कठोर है। मेरे लिए पुरस्कार जीतना संभव नहीं है।"
जब परिस्थिति आती है तब आदमी परिस्थिति पर ही नहीं अटकता। वह असंभव को संभव बनाने के लिए संभावनाओं की खोज प्रारम्भ कर देता है । अनजाने अनेकान्त. हमारे जीवन-व्यवहार में उतरता ही है।
___ गणेश ने संभावना की खोज प्रारम्भ की। सोचा-कोई न कोई उपाय ढूंढ निकालना है जिससे पुरस्कार मिल सके। हारा हुआ तो हूं ही, फिर भी विजय की संभावना को सोच ही लेना चाहिए। ध्यान दिया। गहरे में उतरा। उपाय हस्तगत हो गया। वह उठा। शिवजी की तीन परिक्रमा कर बैठ गया। कार्तिकेय कुछ समय बाद आया। उसे स्वयं पर और अपने वाहन गरुड़ पक्षी पर पूरा भरोसा था । शिवजी से कहा-मैं तो आ गया, पर गणेश तो गया ही नहीं। बेचारा कैसे जाता। वाहन है चूहा। लाओ पुरस्कार । गणेश बोला-मैं पहले पहुंचा हूं। तुम बहुत बाद में आए हो। कार्तिकेय ने कहा—गए ही नहीं तो आए कैसे? यहीं बैठे हो। गणेश ने हंसते हुए कहा-मैंने संसार की तीन परिक्रमाएं की हैं । कार्तिकेय ने विस्मय से पूछा-कैसे? गणेश बोला-संसार जिसमें समाया हुआ है उस शिव की मैं तीन बार परिक्रमा दे चुका हूं। जो शिव है वह संसार है और जो संसार है वह शिव है।
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