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प्रवचन ५
संकेतिका १. अनेकान्त तीसरा नेत्र है, इसलिए कि वह निश्चय की आंख से देखता है । २. वस्तु-सत्य की दृष्टि से तीसरा नेत्र है-ध्रौव्य । ३. आचार की दृष्टि से तीसरा नेत्र है-समता। ४. वैचारिक दृष्टि से तीसरा नेत्र है-तटस्थता ।
विचार के प्रति राग—मताग्रह । विचार के प्रति द्वेष—मताग्रह । विचार के प्रति समता-तटस्थता, अनाग्रह । निश्चय......धौव्य-सूक्ष्म । व्यवहार.....उत्पाद, व्यय-स्थूल । दोनों के प्रति सम.....मध्यस्थ । अनेकान्त का आधार-निश्चय और व्यवहार ।
पदार्थ
प्रियता
अप्रियता
पदार्थ
न प्रियता
न अप्रियता
समता
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