Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 93
________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र दार्शनिकों ने स्याद्वाद को सदा संदेहवाद माना, अनिश्चायक माना। किंतु आज के वैज्ञानिकों ने स्याद्वाद का अर्थ—सम्भावनावाद किया है। यह बहुत ही उचित अर्थ है। इससे नई दृष्टि मिलती है । स्याद्वाद, अनेकांतवाद, सम्भावनावाद है । यह सम्भावना को स्वीकार करने वाली दृष्टि है । इस स्वीकृति का आधार यह है-स्थूल जगत् में स्थूल पर्याय के आधार पर निर्णय लिया जाता है। प्रश्न होता है, क्या हमारा जगत् इतना ही है जितना हम जानते हैं? नहीं ! स्थूल जगत् से बहुत बड़ा है चेतना का सूक्ष्म जगत् । अभिव्यक्त पर्यायों के जगत् की अपेक्षा बहुत विशाल है अनभिव्यक्त पर्यायों का सूक्ष्म जगत् । अभिव्यक्त पर्याय अल्प होते हैं, अनभिव्यक्त पर्याय बहुत अधिक हैं । भविष्य की सम्भावनाओं का संसार बहुत विशाल है । उनको नहीं भुलाया जा सकता। जो व्यक्ति इन सम्भावनाओं के आधार पर कोई निर्णय लेता है, वह निर्णय सही होता है। वर्तमान पर्याय के आधार पर जो निर्णय होता है, उसके साथ यह स्पष्ट बोध होना चाहिए कि वह निर्णय वर्त्तमान या स्थूल पर्याय के आधार पर लिया जा रहा है। पर्याय के बदलते ही निर्णय भी बदल जाएगा। इससे व्यवहार खंडित नहीं होता, किन्तु व्यवहार और अच्छे ढंग से चलता है। एक कर्मचारी है। आज वह ईमानदार है, कल वह धोखा दे सकता है। आज वह धोखेबाज है, कल वह ईमानदार हो सकता है । आज जिस पर पूरा विश्वास है, वह कल अविश्वसनीय बन सकता है। आज जिस पर विश्वास नहीं है, वह कल विश्वसनीय बन सकता है। हम वर्तमान पर्याय को सार्वभौम मानकर नहीं चल सकते ससीम को असीम मानकर नहीं चल सकते । सापेक्षता के सूत्र को तोड़कर, निरपेक्ष होकर कोई निर्णय नहीं ले सकते। हमें जो भी निर्णय लेना होता है, वह व्यवहार की भूमिका पर, सापेक्षता के आधार पर लेना होता है। स्वतंत्रता और परतंत्रता ___ मैं चर्चा कर रहा था स्वतंत्रता की । कौन स्वतन्त्र है हमारी दुनिया में ? केवल अस्तित्व के धरातल पर कोई स्वतन्त्र हो सकता है । स्वतन्त्रता का निर्णय द्रव्य-सापेक्ष होता है । जिस पदार्थ की संरचना में जितने घटक द्रव्य हैं, वह उसकी स्वतंत्रता है । अस्तित्व स्वतंत्र होता है । एक के अस्तित्व में दूसरा कोई हस्तक्षेप नहीं करता । एक परमाणु का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है, उसमें दूसरा परमाणु हस्तक्षेप नहीं करता, कभी उस पर आक्रमण नहीं करता, कभी उसे नष्ट करने का प्रयत्न नहीं करता। प्रत्येक पदार्थ अपने-अपने अस्तित्व में स्वतंत्र है। चेतन, अचेतन—सब अस्तित्व की दृष्टि से स्वतंत्र हैं। आत्मा का भी स्वतंत्र अस्तित्व है और परमाणु का भी स्वतंत्र अस्तित्व है। जहां अस्तित्व का प्रश्न है वहां पूरी स्वंतत्रता है। कोई पदार्थ किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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