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स्वतंत्रता
आवश्यक है। वह निर्णय वर्तमान के आधार पर था, वर्तमान काल-सापेक्ष था। वही आइंस्टीन विश्व का बहुत बड़ा गणितज्ञ बना और अपने युग का शीर्षस्थ बौद्धिक कहलाया।
अनेकान्त एक महान् समाधान है। इसे समझा नहीं गया । यह कभी उलझाता नहीं। यह अनिर्णय की बात नहीं कहता। यह निश्चय तक पहुंचाता है। अनेकान्त है पुरुषार्थ और पराक्रम का सूत्र
अनेकान्त का सूत्र–वर्तमान पर्याय के आधार पर निर्णय लो किन्तु संभावनाओं के द्वार बंद मत करो। उसे सदा उद्घाटित रखो। यह सोचो-आज यह पर्याय है, कल दूसरा पर्याय सामने आ सकता है । हजारों-हजारों पर्याय उद्घाटित हो सकते हैं । कालचक्र की गतिशीलता के आधार पर जीवन में अनन्त पर्याय व्यक्त हो सकते
एक आदमी आज रुग्ण है। वर्तमान पर्याय में वह बीमार है। यदि उसे ही अन्तिम मानकर बैठ जाएं, स्वास्थ्य की सारी संभावनाओं को मिटा दें, तो बीमार के लिए किए जाने वाले प्रयत्न नष्ट हो जाएंगे। कोई प्रयत्न नहीं होगा।
अनेकान्त पुरुषार्थ और पराक्रम का सूत्र देता है । वह कहता है-वर्तमान पर्याय को शाश्वत मत मानो, सार्वभौम मत मानो। आज जो बीमार है, वह कल स्वस्थ हो सकता है। आज जो स्वस्थ है, वह कल बीमार हो सकता है । बीमारी को मिटाने का प्रयत्न करो, पुरुषार्थ करो, स्वास्थ्य का पर्याय अभिव्यक्त हो सकता है।
ध्यान साधना में भी अनेकान्त को नहीं भुलाया जा सकता है। मैं ध्यान को प्रारम्भ करने वाले साधकों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। आपका मन स्थिर है या अस्थिर । यदि आप कहें कि हमारा मन स्थिर है तो फिर यहां आने की, ध्यान-शिविरों में भाग लेने की आवश्यकता ही क्या है? चले जाइए अपने घर । यदि आप कहें कि हमारा मन चंचल है तो फिर यहां आने की क्या जरूरत है ? जाइए अपने घर । यह निर्णय वर्तमान पर्याय के आधार पर होगा। इस निर्णय के आधार पर न आपको ध्यान में बैठने की जरूरत होगी और न मुझे ध्यान का निर्देश देने की जरूरत होगी। यह सारा किया जाता है भविष्य की पर्यायों के आधार पर, संभावनाओं के आधार पर। आज जिसका मन बहुत चंचल है, क्षण-भर के लिए भी स्थिर नहीं होता, संभव है वह कल महान् योगी बन सकता है। स्याद्वाद है संभावनावाद
स्याद्वाद का अर्थ-सम्भावनाओं का स्वीकार । आश्चर्य होता है कि भारतीय
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