________________
स्वतंत्रता
निर्णायकता का सूत्र - अनेकान्त
एक भाई ने पूछा- क्या स्वतंत्रता संभव है ? मैंने कहा- यह मत पूछो । यह पूछो — क्या परतंत्रता संभव है? उसने कहा - परतंत्रता तो बहुत स्पष्ट है । मैंने कहा— फिर स्वतंत्रता क्यों अस्पष्ट है ?
स्वतंत्रता और परतंत्रता -- दोनों सापेक्ष हैं, दोनों साथ जुड़ी हुई हैं । यदि परतंत्रता है तो स्वतंत्रता भी होगी और यदि स्वतंत्रता है तो परतंत्रता भी होगी । दोनों साथ जुड़ी हुई हैं। एक नहीं हो सकती। कोरी स्वतंत्रता भी नहीं हो सकती और कोरी परतंत्रता भी नहीं हो सकती । होंगी तो दोनों साथ होंगी और न होंगी तो एक भी नहीं होगी ।
I
यह अनेकान्त की बात है । लोग सोचते हैं— अनेकान्त उलझाता है । समस्या का कोई समाधान नहीं देता । उसका उत्तर स्पष्ट नहीं होता । आदमी कुछ भी नहीं समझ पाता। अनेकान्त कहता है— आदमी अच्छा भी है और बुरा भी है । इससे व्यवहार कैसे चलेगा? चोर में साहूकार और साहूकार में चोर है तो व्यवहार का निर्णय क्या होगा ? फिर साहूकार को खोजने की आवश्यकता ही क्या है ? चोरों को इकट्ठा कर लें, क्योंकि चोर में भी साहूकार है। इससे व्यवहार चलेगा नहीं, बिगड़ जाएगा। प्रश्न होता है— क्या अनेकान्त के आधार पर सामाजिक व्यवहार चल सकता है ? क्या अनेकान्त के आधार पर जीवन का व्यवहार चल सकता है ? उसके आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। वह निर्णय तक नहीं पहुंचाता, निश्चय तक नही ले जाता । अनेकान्त दोनों ओर देखना सिखाता है। आदमी इधर भी देखने लग जाता है, उधर भी देखने लग जाता है । हाथ कुछ नहीं आता ।
यह बात आज की नहीं, हजारों वर्ष पुरानी है कि स्याद्वाद आदमी को भटकात है । अनेकान्त व्यक्ति को कहीं पहुंचाता नहीं, बीच में ही अटका देता है । अनेकान्त की भाषा अनिश्चय की भाषा है । वह निर्णायक नहीं होती ।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस विषय पर गहराई से चिन्तन नहीं किया गया, इसलिए ये विचार बने । यदि गहराई से विचार किया होता तो निर्णय यह होता कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org