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स्वतंत्रता
तीन आयामों वाली दृष्टि
अनेकांत बहुत बड़ा सूत्र है—- भविष्य को जानने का, अतीत से बोधपाठ लेने का और वर्त्तमान में जीने का । अनेकांत भविष्य को अस्वीकार नहीं करता, अतीत के पर्यायों को ध्यान में रखता है और दोनों को स्वीकार कर वर्त्तमान पर्याय के आधार पर व्यवहार का निर्णय करता है ।
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अनेकांत है तीन आयामों वाली दृष्टि । वह एक आयाम वाली दृष्टि नहीं है । इसके सामने तीनों आयाम तथा काल की दृष्टि स्पष्ट होती है । काल - सापेक्ष निर्णय व्यवहार को ठीक चलाने वाला होता है। जहां निर्णय काल - सापेक्ष नहीं होता, वहां सारी उलझने पैदा होती है । कोई व्यक्ति पुरुषार्थ करता है । कभी वह सफल नहीं होता, तब दुःखी बन जाता है। वह सोचता है, इतना श्रम किया, कुछ भी नहीं हुआ । वह व्यक्ति इसीलिए दुःखी बनता है कि वह अनेकान्त को नहीं जानता । यदि वह अनेकान्त को जानता तो कभी दुःखी नहीं बनता । वह सोचता है— पुरुषार्थ वर्त्तमान का पर्याय है । आदमी अपनी बुद्धि से, शरीर से पुरुषार्थ करता है फिर भी यदि सफल नहीं होता है तो कोई न कोई तत्त्व बाधक बन रहा है । वह तत्त्व है— अव्यक्त पर्याय, सूक्ष्मपर्याय, अतीत का पर्याय अर्थात् अतीत का कोई ऐसा संचय जो बाधा दे रहा है । अतीत को छोड़कर वर्त्तमान की व्याख्या नहीं की जा सकती । वर्त्तमान और अतीत को छोड़कर भविष्य की व्याख्या नहीं की जा सकती । वर्त्तमान का काल विपाक - काल होता है । वर्तमान है परिणाम का काल, वर्तमान है संरचना का काल, निर्माण का काल । वर्तमान अतीत से प्रभावित होता है और भविष्य को प्रभावित करता है । अतीत और भविष्य के बीच की कड़ी है वर्त्तमान । अतीत के प्रभावों से सर्वथा अप्रभावित वर्त्तमान की कल्पना नहीं की जा सकती। मनश्चिकित्सक अतीत की घटनाओं को सुनकर, समझकर चिकित्सा करता है । वह रोगी को शिथिलीकरण की मुद्रा में सुलाकर अतीत को अनावृत करने की बात कहता है । अतीत के घटनाक्रम को वह ध्यान से सुनता है और रोग के मूल कारण को पकड़ लेता है । अतीत की कहानी सुनते-सुनते वह चिकित्सक निर्णय ले लेता है कि कहां, कहां किस घटना से वह प्रभावित हुआ है और कैसी मानसिक ग्रन्थि बनी है । अतीत के बिना वर्त्तमान की व्याख्या नहीं की जा सकती । मनश्चिकित्सक रोग के निदान में आनुवंशिकता ( हेरिडिटी) को भी ध्यान में रखता है। उसके बिना वह रोग का निर्णय नहीं ले पाता । आवश्यकता के आधार पर निर्णय करना अतीत के आधार पर वर्तमान का निर्णय
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