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अनेकान्त है तीसरा नेत्र
करना है । वर्तमान के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता । अतीत वर्त्तमान सापेक्ष होता है । निर्णय अतीत और वर्तमान सापेक्ष होना चाहिए। दोनों विभाजित नहीं हो सकते । भविष्य की संभावना भी अतीत और वर्तमान के आधार पर होती है । वर्त्तमान को छोड़कर भविष्य की संभावना नहीं की जा सकती । आज का धार्मिक वर्तमान को भुलाकर भविष्य की संभावना करता है । वह कहता है— धर्म से भविष्य सुधर जाएगा, चाहे वर्त्तमान अच्छा हो या न हो । धर्म से परलोक सुधर जाएगा, चाहे इहलोक सुधरे या न सुधरे । वह वर्त्तमान की चिन्ता नहीं करता । वर्त्तमान-निरपेक्ष भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती । वर्त्तमान को तोड़कर भविष्य को नहीं देखा जा सकता है । वर्तमान की प्रवृत्ति को तोड़कर भविष्य के परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती । प्रवृत्ति और परिणाम — दोनों सापेक्ष होते हैं। दोनों को काटा. नहीं जा सकता । कितनी सापेक्ष है अनेकान्त की दृष्टि ! फिर यह प्रश्न क्यों होता है.. कि अनेकान्त की दृष्टि उलझाती है । क्या बिना अनेकान्त या सापेक्षता के सूत्र को पकड़े बिना किसी तथ्य की व्याख्या की जा सकती है ? क्या वस्तु सत्य या आचारव्यवहार की व्याख्या की जा सकती है ? कभी नहीं की जा सकती। जीवन की पूरी प्रणाली, जीवन की पूरी पद्धति अनेकान्त के बिना व्याख्यायित नहीं हो सकती ।
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एक व्यक्ति के अर्थाभाव था। दूसरे आदमी ने कहा- तुम अपने दोनों पैर -दे: दो, मैं तुम्हें पांच हजार रुपये दे दूंगा । उसने कहा- “पैर दे दूं ! क्या पंगु बन जाऊं ?... बिना पैरों के जीवन-यात्रा कैसे चला पाऊंगा ? पैर नहीं दे सकता।" इस निर्णय को... हम क्या मानें? क्या यह निरपेक्ष निर्णय है ? नहीं, यह भाव - सापेक्ष निर्णय है, यह अवस्था सापेक्ष निर्णय है । न जाने किस परिस्थिति में, किस अवस्था में कौन सी घटना घट जाए ?
व्यक्ति को कभी पैर कटाने भी पड़ जाते हैं। सड़क दुर्घटना हुई । भयंकर चोट. लगी। डॉक्टर ने परामर्श दिया, पैर कटवा लो, अन्यथा जीवन खतरे में हो सकता है । सर्जरी के पांच हजार रुपये लगे । एक स्थिति थी कि दूसरा व्यक्ति पैरों के पांच हजार रुपया दे रहा था और आज उसे अपने पांच हजार रुपये खर्च करने पड़े । जिस व्यक्ति ने यह निर्णय लिया कि दस हजार में पैर नहीं दूंगा वह पांच हजार देकर पैर कटवा रहा है । यदि वह एकांगी निर्णय लेता और आज इस अवस्था में भी पैर नहीं कटवाता तो कभी का मर जाता, जीवन के हाथ धो बैठता ।
बहुत सारे लोग इसी एकांगी भाषा में सोचते हैं, बोलते हैं । वे कहते हैं— जो निर्णय ले लिया, वह अटल है । परिस्थिति बदले या न बदले, हमारा निर्णय अटल
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