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तीसरा नेत्र (२)
जाता है और से नाना प्रकार के अनुभव होने लग जाते हैं । उसे देवलोक, नए-नए लोकों का साक्षात्कार-सा होता है। वह तब मानने लगता है कि एल.एस. डी. कोई ईश्वरीय अनुदान है । उस एल. एस. डी. में सेराटोनिन रसायन होता है। हमारे मस्तिष्क में भी सेराटोनिन होता है। वह सेराटोनिन हमारे मस्तिष्क को बहुत ही प्रभावित करता है। उससे दृष्टि विकृत होती है । वह मिथ्या-दृष्टि बन जाती है । उससे समूचा चरित्र प्रभावित होता है । वह विकारपूर्ण बन जाता है।
ध्यान-साधना का प्रयोजन है-इन रसायनों को बदल देना। हम शान्तिकेन्द्र, ज्योतिकेन्द्र और दर्शनकेन्द्र पर ध्यान करते हैं। इससे मस्तिष्क का भाग हाइपोथेलेमस प्रभावित होता है। इससे पिनियल और पिच्यूटरी-ये दोनों ग्रन्थियां प्रभावित होती हैं। जब ये चैतन्य-केन्द्र प्रभावित होते हैं तब स्राव बदल जाते हैं।
प्रेक्षाध्यान की पद्धति में चैतन्य केन्द्रों पर किया जाने वाला ध्यान बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसके बिना व्यक्तित्व का रूपान्तरण नहीं किया जा सकता । हम श्वास पर या शरीर पर ध्यान करें या लेश्या ध्यान करें, किन्तु इनके मूल में जो सच्चाई है वह यह है कि जब तक चैतन्य-केन्द्रों को प्रभावित नहीं किया जाता इन स्रावों को नहीं बदला जाता तब तक व्यक्तित्व का रूपान्तरण नहीं हो सकता, आदतों का परिवर्तन और स्वभाव का परिवर्तन नहीं हो सकता। चैतन्य-केन्द्रों को सक्रिय किए बिना विशेष प्रकार की चेतना का जागरण नहीं होता मूर्छा का विघटन नहीं होता और दृष्टि नहीं बदलती। हम कह सकते है कि तब तक सही अर्थ में दर्शन का बोध ही नहीं होता। तीसरी आंख : वस्तु-सत्य की दृष्टि से ___ वस्तु-सत्य की दृष्टि से तीसरा नेत्र है-ध्रौव्य, ध्रुवता । हम उत्पाद को देखते हैं और विनाश को देखते हैं। ये दो आंखें है। जब तक ध्रौव्य को देखने की हमारी आंख नहीं खुलती, जब तक शाश्वत को देखने वाली प्रज्ञा नहीं जागती, तब तक तीसरा नेत्र उद्घाटित नहीं होता। वस्तु-सत्य की दृष्टि से कहें तो तीसरा नेत्र होगा ध्रुव्रता को पकड़ने वाली प्रज्ञा । तीसरी आंख : आचार-शास्त्रीय दृष्टि से
आचार की दृष्टि से विचार करें तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि हमारे आचार में पदार्थ का गहरा सम्बन्ध होता है। पदार्थ की प्रियता एक आंख है। पदार्थ की अप्रियता दूसरी आंख है । ये दोनों खुली रहती हैं तब तक आचार की पवित्रता नहीं हो सकती। आचार की पवित्रता तब होती है जब प्रियता और अप्रियता से परे की
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