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अनेकान्त है तीसरा नेत्र
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सब
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है । वनस्पति में चैतन्य है । कीड़ों-मकोड़ों में चैतन्य है । पशु और आदमी में चैतन्य है । चैतन्य, केवल चैतन्य बचेगा। सारे पर्दे हट जाएंगे। केवल एक शेष रहेगा, मिट जाएंगे। अभेद रहेगा, चैतन्य रहेगा। सारे भेद समाप्त हो जाएंगे । भेद और अभेद, विरोध या अविरोध — यह मात्र पर्यायों का विश्लेषण है । वस्तु में दोनों धर्म एक साथ रहते हैं । विरोध और अविरोध, अस्तित्व और नास्तित्व, सत्ता और असत्ता, शाश्वतता और अशाश्वतता- - ये युगल एक साथ रहते हैं। केवल पर्याय का अन्तर है, हमारे देखने के कोण का अन्तर है । हम स्थूल पर्याय को देखते हैं और उसी के आधार पर वस्तु का विश्लेषण कर देते हैं । एक बात को फिर हम समझ लें कि हमारे सारे निर्णय, सारी मान्यताएं, सारी धारणाएं और सिद्धांत-स्थूल नियमों के आधार पर बनते हैं । उनको हम शाश्वत नियम न मानें, यथार्थ न मानें, सूक्ष्म जगत् के नियम न मानें ।
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निश्चय और व्यवहार
अनेकान्त ने सूक्ष्म और स्थूल- दोनों नियमों की व्याख्या की और दो कोण हमारे सामने प्रस्तुत कर दिए। एक कोण - निश्चय नय और दूसरा कोण है— व्यवहार नय । यदि सूक्ष्म सत्यों को जानना हो तो निश्चय नय का सहारा लो और स्थूल नियमों को जानना हो तो व्यवहार नय का सहारा लो । जब ये दोनों नय सापेक्ष होते हैं, समन्वित होते हैं, तब हम इस सच्चाई तक पहुंच जाते हैं कि भेद और अभेद भिन्न-भिन्न नहीं, किन्तु समन्वित रहते हैं । समन्वय की एक बड़ी धारा हमारे सामने प्रवाहित हो जाती है । इसी समन्वय की धारा के आधार पर मध्यकाल में जैन आचार्यों ने बहुत बड़ा काम किया और प्रत्येक दर्शन के साथ समन्वय का मार्ग प्रशस्त किया।
एक जैन आचार्य ने लिखा है कि आत्मा और पुद्गल में कोई अन्तर नहीं है । केवल एक धर्म का अन्तर है । आत्मा चेतन है, पुद्गल चेतन नहीं है । आत्मा में अनन्त धर्म हैं और पुद्गल में भी अनन्त धर्म हैं । उन अनन्त धर्मों में केवल एक धर्म — चेतन का अन्तर है और कोई अन्तर नहीं है । बहुत ही महत्त्वपूर्ण कथन है । जब अनन्त धर्मों में सब मिलते हैं, केवल एक नहीं मिलता, तो समानता है ही सबकी । बहुत सारी समानता है । अन्तर डालने वाला एक ही मुख्य गुण होता है ।
समानता की अनुभूति
दो प्रकार के होते हैं - सामान्य गुण और विशेष गुण । सामान्य गुण चेतन और अचेतन सब में समान रूप से मिलता है । आत्मा चेतन होते हुए अमूर्त है और अचेतन पदार्थ भी अमूर्त होते हैं । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अचेतन हैं,
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