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अनेकान्त है तीसरा नेत्र
लिए ललचा जाए। अन्यान्य खजानों का और भण्डारों का मोह भी उसका टूट जाए। जो आदमी आकाश के इस अनन्त खजाने की खोज में निकल पड़े तो शेष सारे खजानों की खोज समाप्त हो जाएगी। इस हाल में जहां हम बैठे हैं, वहां न जाने कितने प्राणियों के सोचे हुए चित्र लटक रहे हैं। लाखों-करोड़ों चित्र हैं। उन चित्रों को हम देख सकते हैं। चित्र चित्र के रूप में बने हुए हैं। इन चित्रों को किसी चित्रकार ने चित्रित नहीं किया। किन्तु प्रत्येक आदमी जो सोचता है, वह उसके मन में चित्र रूप में उभरता है । चिन्तन का चित्र पढ़ा नहीं जाता, देखा जाता है। चिन्तन भाषा में नहीं होता, चित्र में होता है आप जानते हैं कि कुछेक राष्ट्रों की लिपि चित्रात्मक है। उनका सारा व्यवसार चित्र के माध्यम से होता है, लिपि के द्वारा नहीं, अक्षरों के द्वारा नहीं। __हमारे मन का कार्य है-चित्र तैयार करना। एक आदमी मकान के बारे में सोचता है तो दिमाग में मकान का चित्र बन जाता है। मोटरकार के विषय मेंसोचता है तो मस्तिष्क में मोटर का चित्र बन जाता हैऔर रोटी के बारे में सोचता है तो रोटी का चित्र उभर आता है। न जाने एक दिन में हम कितने-कितने चित्रों का निर्माण कर देते हैं। विश्व में ऐसा एक भी चित्रकार नहीं है जो एक दिन में इतने चित्र बना सके। सारे चित्रकार मिलकर भी इतने चित्र नहीं बन सकते। कौन व्यक्ति ऐसा है जो चित्रकार नहीं है। हम सब चित्रकार हैं । दुनिया उसी को चित्रकार मानती है जो दस-बीस-पचास चित्र बना लेता है । परन्तु आज प्रत्येक आदमी हजारों-लाखों-करोड़ों चित्र बनाता है, पर दुनिया उसे चित्रकार नहीं कहती। बड़ी विचित्र बात है। यह काल्पनिक तथ्य नहीं है, एक यथार्थ है।
अमेरिका में एक आदमी हुआ है। उसमें बड़ी विचित्र शक्ति विकसित हुई है। वह किसी भी वस्तु का चिन्तन करता है, वह चित्र स्पष्ट रूप से मस्तिष्क में उभर आता है। हाई फ्रीक्वेन्सी के कैमरे से वे चित्र उतारे गए। चिन्तन के अनुरूप वे चित्र थे। यह एक आश्चर्य है। प्रसद्धि पत्र "टाइम्स" में उसके चिन्तन के चित्र प्रकाशित हुए हैं । जब उसने मोटर के विषय में सोचा तो सुन्दर मोटर का चित्र कैमरे में उतरा। जब उसने बहुमंजिले मकान के विषय में सोचा तो कैमरे में वह सुन्दर चित्र उभर आया। तदाकार रश्मियों का विसर्जन
प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में चिन्तन के चित्र उभरते हैं । जैसा चिन्तन होता है वैसा ही चित्र बन जाता है। दूसरा चित्र आते ही पहला चित्र मस्तिष्क से निकल कर आकाश के भण्डार में समा जाता है । यह क्रम चलता रहता है। जो चित्र आकाश
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