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तीसरा नेत्र (१)
दर्शन की यात्रा : अनेकान्त का संबल
आचार्य ने शिष्य को अनेकान्त का दर्शन पढ़ाकर कहा - " जाओ, अब दर्शन की यात्रा करो। सब दर्शनों को पढ़ो, सबल विचारों को पढ़ो और जो दर्शन और विचार मिथ्या लगे, उसकी तालिका बनाकर मेरे पास लाओ ।"
शिष्य ने दर्शन की यात्रा प्रारम्भ की। जितने दर्शन थे सबको पढ़ा। दर्शन की यात्रा पूरी हुई। वह आचार्य के पास आया । आचार्य ने पूछा- तुम्हारी दर्शन की यात्रा पूरी हो गई ? शिष्य बोला - यात्रा को सम्पन्न कर आपके चरणों में उपस्थित हुआ हूं | आचार्य ने कहा - लाओ, वह सूची । जो-जो दर्शन मिथ्या लगे, उनकी तालिका बताओ । शिष्य ने कहा- गुरुदेव ! मेरे हाथ खाली हैं ।
कोई पन्ना नहीं मिला ?
पन्ना मिला, पर वह खाली है। लिख नहीं सका ।
• क्या कलम नहीं मिली ?
कलम तो मिली पर चली नहीं ।
क्या चाकू नहीं मिला ?
चाकू मिला, पर चला नहीं ।
क्या स्याही नहीं मिली ?
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स्याही भी मिली, पर लिखने को कुछ था ही नहीं ।
क्या कोई दर्शन या विचार मिथ्या नहीं लगा ?
मुझे कोई दर्शन या विचार मिथ्या नहीं लगा, इसीलिए मैं उनकी तालिका नहीं बना सका ।
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शिष्य ! तुम जाओ। तुम्हारा अध्ययन सम्पन्न हो चुका है । तुम उत्तीर्ण हो ठीक ऐसी ही अन्य घटना मैं देख रहा हूं कि तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य आत्रेय ने जीवक से कहा- जाओ, तक्षशिला के बाहर जंगल में जो औषधियां हों उनको देखो, किन्तु जो वनस्पति औषधि न हो वह मेरे पास ले आओ । आचार्य की आज्ञा शिरोधार्य कर जीवक जंगल में गया । बहुत घूमा । अन्त में वह थक कर
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