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अनेकान्त है तीसरा नेत्र और वे भी विरोधी-युगल। अनन्त धर्मों का एक साथ प्रतिपादन करना किसी के वश की बात नहीं है। शब्द के द्वारा एक क्षण में केवल एक पर्याय का, एक धर्म का ही प्रतिपादन किया जा सकता है। शेष अनन्त रह जाता है। हम यदि एक पर्याय को सत्य मान लेते हैं, तो शेष बचे अनन्त पर्याय झुठला दिए जाते हैं । अनन्त सत्य खंडित हो जाता है और सत्य का एक अंश मात्र स्वीकृत होता है । इसे ही यदि पूर्ण सत्य मान लिया जाता है तो वहां भ्रान्ति होती है।
भाषा की यह सहज दुर्बलता है। जिसे मिटाया नहीं जा सकता। आदमी सोच सकता है, एक क्षण में एक सत्य कहा जाता है, बहत लम्बा जीवन है, सारे जीवन में तो सम्पूर्ण सत्य कह दिया जाएगा। यह भ्रान्ति है । न भूतं, न भविष्यति । न ऐसा हआ है और न ऐसा होगा। इस संसार में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति ने आज तक पूरे सत्य का न कभी प्रतिपादन किया है न कभी कर पाएगा। संभावना भी नहीं है। जीवन के क्षण कितने होते हैं ? आयु की अवधि कितनी होती है ? बहुत थोड़े क्षण है और छोटी अवधि है। विराट सत्य के सामने, अनन्त धर्म वाले सत्य के . सामने किसी भी प्राणी की आयु की सीमा तिनके पर स्थित छोटी-सी बूंद जितनी भी नहीं है । इतना अल्प आयुष्य और इतना विराट् सत्य । आयुष्य उस सत्य की तलहटी को भी नहीं छू पाता। स्यात् शब्द का नया अर्थ
। केवली, भगवान् या सर्वज्ञ अनन्त सत्य को जान लेते हैं, किन्तु उनमें भी यह क्षमता नहीं है कि वे अनन्त सत्य को कह सकें । यह असंभव है । कोई महान् व्यक्ति, ज्ञानी व्यक्ति, दस-बीस-पचास पर्यायों की अभिव्यक्ति कर सकता है। पूरे सत्य को वह कभी नहीं कह सकता। उसके द्वारा प्रतिपादित सत्य के कुछेक पर्यायों को पूर्ण सत्य मानकर अवशिष्ट पर्यायों को हम अस्वीकार कर देते हैं, नकार देते हैं, तब सत्य से हटकर असत्य की ओर चले जाते हैं। हमारा प्रस्थान असत्य की दिखा में हो जाता है। इसीलिए अनेकान्त ने एक युक्ति प्रस्तुत की। उसने कहा—'तुम असत्य से बच सकते हो यदि तुम “स्यात” शब्द का सहारा लेकर चलते हो । जो कुछ कहा, उसके साथ “स्यात्" शब्द लगा लो। वह तम्हे असत्य से बचा लेगा।' “स्यात्" का यहां भावार्थ होगा-“मैं पूर्ण सत्य कहने में असमर्थ हूं । सत्य का एक पर्याय मात्र प्रस्तुत कर रहा हूं।"
प्राचीन साहित्य में “स्यात्” शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं । मैं उसे नए अर्थ में प्रस्तुत करना चाहता हूं । “स्यात्" शब्द का अर्थ है-अपनी अक्षमता का स्वीकार, भाषा की अक्षमता की स्वीकृति । “स्यात्” शब्द का प्रयोग करने वाला व्यक्ति यह
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