Book Title: Anekanta hai Tisra Netra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ सापेक्षता ४७ होते हैं और वह सबको अपने साथ जोड़े रखता है । कोई भी निरपेक्ष नहीं हो सकता। संघ में एक आचार्य बनता है और शेष उसके शिष्य रहते हैं। क्या आचार्य बनने वाला निरपेक्ष हो जाएगा। कभी नहीं। पूज्य कालूगणी कहा करते थे कि आचार्य और अधिक सापेक्ष होता है। पग-पग पर उसे दूसरों की अपेक्षा रखनी पड़ती है। साधु इतना सापेक्ष नहीं होता । वह बहुत सारे कार्य स्वतंत्र रूप से सम्पन्न कर लेता है। आचार्य का उठना, बैठना, सोना, बोलना, भोजन करना, इधर से उधर जाना, सब सापेक्ष होता है, दूसरे साधुओं के सहारे होता है । आचार्य की निरपेक्षता सीमित हो जाती है। एक बार आचार्यश्री ने मुझसे कहा—कभी-कभी मन होता है कि अकेला चुपके-से जाऊं और काम कर लूं। मैंने कहा-आप ऐसा करेंगे तो दूसरों के लिए और अधिक भारी पड़ जाएगा, क्योंकि पता लगे बिना रहेगा नहीं और पता लगते ही पांच-दस साधु उधर दौड़ेंगे। इसमें कोई लाभ नहीं होगा। हम यह न भूलें कि समूचे जगत् की व्यवस्था सापेक्षता के आधार पर चल रही है। कुछ भी और कोई भी निरपेक्ष नहीं है। भाषा और व्यवस्था के जगत् में कोई निरपेक्ष हो ही नहीं सकता। सबके सब सापेक्ष हैं। ध्यान-काल में मैं कहता हूं-आंखे बन्द कर लें। इसको भी आप निरपेक्ष न मानें। साधना के क्षेत्र में अनेकान्त का पूरा उपयोग होता है। हमें सापेक्षता का उपयोग करना है। आंख बन्द करें। किसलिए? इसके पीछे बहुत बड़ी अपेक्षा है कि बाहर से आने वाले प्रभाव साधक को प्रभावित न करें। साधक प्रभावों से बच जाए। तो क्या खुली आंखों से ध्यान नहीं हो सकता? खुली आंखों से भी ध्यान हो सकता है। बहुत अच्छा हो सकता है। जब विकल्प अधिक आने लगें, सताने लगें, तब खुली आंखों से ध्यान करना लाभप्रद होता है, विकल्प एक साथ समाप्त हो जाते हैं । फिर प्रश्न होता है कि क्यों नहीं खुली आंखों से ही ध्यान किया जाए? खतरे को भी समझ लें । जब आंखे बन्द होती हैं तब बाहर को देखना बन्द हो जाता है और भीतर अधिक सक्रिय बन जाते हैं। जब खुली आखों से ध्यान किया जाता है तब बाहर को देखने लग जाते हैं और भीतर से कुछ हट जाते हैं । भगवान् महावीर ने इसीलिए तीसरी बात कही कि ध्यान-काल में आंखें अधमुन्दी रहे, न पूरी खुली और न पूरी बन्द, अधखुली आंखें, यह सबसे अच्छा तरीका है ध्यान करने का। इसका बहुत बड़ा लाभ है । इससे हमें यह बोध होता रहेगा कि एक बाहर की दुनिया है और एक हमारे भीतर की दुनिया है। आंख आधी बन्द है, इसका अर्थ है कि बाहर की दुनिया से भी सम्पर्क को तोड़ो। आंख आधी खुली है, इसका अर्थ है कि भीतर में भी कुछ है, उससे सम्पर्क जोड़ो। दोनों ओर हमारी दृष्टि लगी रहे । हम For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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