Book Title: Anekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 8
________________ 0.1/७ गणधरादि कथित सूत्र के आश्रय से आचार्यादि के द्वारा भले प्रकार समझाये जाने पर भी यदि वह जीव उस पदार्थ का समीचीन श्रद्धान न करे तो वह जीव उस ही काल से मिथ्यादृष्टि हो जाता है। ___ हमारी चिरभावना रही है और है कि सभी जीव सम्यग्दृष्टि बने रहें और . उन्मार्गी न हो। अतः परम्परित आचार्यों के विरोध में खड़े होकर उस विरोध को ही अपनी प्रतिष्ठा का माध्यम न बनावें। मतभेद होना तो स्वाभाविक है, पर जिनवाणी कथन को मिथ्या सिद्ध करने का दुष्प्रयास स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। हमें तो हमेशा से जिनवाणी और उसकी संपुष्टि करना इष्ट रहा है और हमारी उस पर दृढ़ श्रद्धा है। तभी तो हमारी ___ 'जिनवाणी माता दर्शन की बलिहारियां' । 'हे जिनवाणी भारती! तोहि जपूं दिनरैन' आदि भावनायें फलवती हो सकेंगी? हम पुनः उन लोगों से विनम्रतापूर्वक कहना चाहेगे जो कतिपय विद्वानों की सम्मतियों के आधार पर केवल शौरसेनी को ही जिन-आगमों की भापा सिद्ध करने पर तुले हैं-वे ऐसी घोपणा क्यों नहीं करत अथवा कोई सशक्त आन्दोलन क्यों नहीं छेड़ते कि -जिन कृतियों मे अर्धमागधी की पुष्टि है, वे कृतियां और उनके निर्माता दिगम्बराचार्य आगम वाह्य और अमान्य हैं, उनका बहिप्कार होना चाहिए'- आदि ! बहुत क्या कहें? आजकल जिनवाणी के प्रचार के वहाने ट्रैक्टों की भरमार है। परम्परित आचार्य की कृतियों को पढ़ने और समझने की जिन्हें फरसत नही उनके लिए निम्न स्तरीय आगम विरुद्ध ट्रैक्ट परोस-परोस कर श्रद्धालुओं के रूप में जिनवाणी से दूर करने की मुहिम जोरों पर है। हम तथाकथित परम्परावादी लोग तो ऐसे ट्रैक्ट देखकर उस शायर को याद कर लेते हैं, जिसने कहा है 'हम ऐसी कुल किताबें काबिले जब्ती समझते हैं। कि जिनको पढ़ के बेटे वाप को खन्ती समझते हैं।।' अस्तु, परम्परित पूर्वाचार्यों और उनके द्वारा ग्रथित जिनवाणी हमारे लिए सर्वोच्च, आदरणीय और मान्य है। हम किसी भी भांति उनकी अवहेलना नहीं कर सकते। भले ही कुछ लोग 'शौरसेनी पंथ' नामक कोई नया पंथ कायम करने पर ही उतारू क्यों न हों। (यह तो सभी जानते हैं कि आज का युग अर्थयुग है और जो कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है वह सव धन के वल पर ही हो रहा है। आज केवल धनिक ही नहीं, अपितु कुछ त्यागी भी धन बल पर स्वच्छन्द और वहुचर्चित हैं।) श्रद्धालुओं को तो जिनवाणी भारती ही मान्य और श्रद्धास्पद है। वे सब उसकी शरण में है और रहेंगे।

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