Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 9
________________ [ अहिंसा की विजय दोनों ही मौज प्रानन्द विभोर हैं । इसी समय बाहर से दरवान-नौकर आया और बोला, राजन् ! पुरोहित मारिंगकदेव आये हैं । इस प्रकार सूचना दी। उस नौकर के पीछे-पीछे ही माणिकदेव पुरोहित भी प्रविष्ट हुआ । उसे देखते ही राजा शोघ्र ही सिंहासन से उठ खड़े हो गये। उनका अभिवादन किया । अपने ही पास स्थित मासन पर बैठने की प्रार्थना की। उच्च आसन पर मुस्कुराते हुए शोभित हुए । पुरोहितजी के आसन अलंकृत करने पर राजा भी अपने सिंहासनारूढ हुए। तथा बोले, "क्या आज्ञा है आपकी ?" इस प्रकार कहते हुए उनकी ओर दृष्टि डाली। ये माणिकदेव एक महान पण्डित हैं। राज पुरोहित तो हैं ही साथ ही समस्त गांव के-मल्लिपुर के भी ये गुरु हैं। सभी इनका सम्मान करते हैं । बहुत महत्व देते हैं। महाराज पद्मनाभ अपने समस्त राजकाज व घरेल कार्यों को भी इन्हीं की परामर्शानुसार करते हैं। कुछ कठिन कार्य भी योगायोग से इनकी आज्ञा प्रमाण कार्य करने से सफल हो गये। अत: राजा की श्रद्धाभक्ति भी इनके प्रति प्रगात हो गई। यद्यपि महीपति की प्राय इस समय ६० वर्ष होगी । माणिकदेव की लगभग ४० बर्ष तो भी उसका चेहरा देखते ही भूपांत का मस्तक उसके बरमों में नत हो जाता है। माणिक देव के चेहरे पर रौब है, उसकी स्नायुए सुगठित हैं, आँखों में अद्भुत तेज है, आवाज बुलन्द और प्रभावी है। वह भगवा पोषाक पहनता है । सचमुच वह राजगुरु होने के योग्य हो गोभनीय लगता है। उसके रंग-ढंग का असर सभी लोगों पर अनायास पडता है । पद्मनाभ राजा को तो उसने बहत ही प्रभावित कर लिया था। वह उसके पीछे पागल सा हो गया था; इसी कारण मल्लिपुर के राज्य पर उसका विशेष प्रभाव जम गया था। उसकी शक्ति प्रसार और उत्कर्ष का कारण भी एक अपने ढंग का अनोखा ही था । वह एक ऐतिहासिक घटना थी। घटना इस प्रकार है पष्मराजा (पद्मनाभि) इस माणिकदेव का दास बन गया था, यह माणिकदेव पिरोहित काली देवो का भक्त था । परन्तु काली देवो राजा की कुल देवी नहीं थी, न वह इसे जानता ही था । पन्द्रह वर्ष पहले मल्लिपुर की प्रजा भी इसका नाम भी नहीं जानती थी। इस नगर के समीप एक मन्दार नाम का अत्यन्त रमणीक मनोहर नातिदीर्घ-विशाल पर्वत वा उस पर सुमनोज, रमणीक जिनालय था। जिनालय में बाल ब्रह्मचारी श्री मल्लिनाथ भगवान का अति सौम्य बिम्ब विराजमान था । प्रतिमा अत्यन्त

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