Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 85
________________ 78] [ अहिंसा की विजय ही लोगों ने "अहिंसा धर्म की जय" घोष पुन: किया / पुरोहित के चेहरे पर एक सन्तोष की छठा पायी और पुनः सदैव के लिए विलीन हो गई / अर्थात् जयघोष के साथ ही उसके प्राण पखेरु उड गये। वहाँ से निकल कर सब लोग श्री अमरकीर्तिजी आचार्य महाराज के पुनीत दर्शनों को 'ये ! हिंसा की इस प्रचण्ड, महान विजय को देखकर उन्हें कितना पानन्द हुआ कौन कथन कर सकता है ? "परम पुनीत अहिंसा धर्म की जय" मा JHODI प

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