Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ अहिंसा की विजय
तत्क्षरण एक नव जवान युवक उसके सामने नम्रता से आ खडा हुआ । पुरोहित उससे कहने लगा
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जाओ, मन्दिर का दरवाजा बन्द करो । मठ से भी कोई प्रकार का हल्ला गुरुला नहीं होने देना । श्राज महाराज देवी से कोई प्रश्न पूछने वाले हैं। प्रश्न के साथ कुछ विषय का स्पष्टीकरण देवी से कराने वाले हैं समझे ? जा | "इस प्रकार कहकर माणिक देव ने उससे कुछ नेत्र संकेत किया. मौन भाषा में कुछ समझाया और दरवाजा बन्द कर नरसिह चला
गया !
माणिक देव महाराज को लेकर गर्भगृह में नया । वहाँ के भयानक, हृदय विदारक दृश्य को देखकर राजा की छाती धक् धक् करने लगी । यद्यपि पिछले चौदह वर्षो में उसने कई बार ऐसे हृदय विदारक दृश्य देखे थे । परन्तु आज पहले से ही उसे भय था पुनः यह हत्याकाण्ड देखने को मिला इससे यह दृश्य विशेष भयानक दीख पडा । वह अनमना साथ ही साथ पुरोहित के पीछे जाकर देवी के सामने खड़ा हो गया । देवी काल-विकाल विरूप भयंकर मूर्ति, नाना आयुध धारण किये हुए उसके आठ हाथ, से ही गले में नरमुण्डों की माला तथा उसके पाँवों के पास अभी-अभी काटा हुआ, रक्त मे लथपथ पशु का यह घड़, यह सब देखकर भला किसका हृदय नहीं धडकेगा ? वहाँ के दृश्य से तो श्मशान में अधिक शान्तता हो सकती है | पूरा बुचड खाना था वहाँ । भुक पशुओं का घात स्थान ? घृणा और भय स्वाभाविक था । राजा साहब जैसे ही वहाँ पहुँचकर खड़े हुए कि माणिक देव पुरोहित ने देवी पगतले भरे रक्त में एक उंगली डुबोकर राजा के ललाट पर टीका लगाया, उसे तीर्थ प्रसाद दिया और श्रतिगम्भीर मुद्रा करके अि बन्द कर देवी की भक्ति - स्तुति करने लगा । वह प्रार्थना करने लगा उसी समय महाराज ने भी साष्टांग नमस्कार किया । वहाँ व्याप्त ग्रूप की धुआ की तीन बास से राजा का जीव घुटने लगा था, पर करता क्या ? खडा रहा । वही देवी के पास ही रखा नन्दादीप जल रहा था उसमें और थोड़ा तेल डालकर पुरोहित भी देवी के पास ही खड़ा हो गया । उससे राजा ने जैसा कहा उसी प्रकार देवी से प्रश्न किया । वह धूर्त बोला
"महादेवी, माते | इस राजा को बहुत शीघ्र ही कोई बढाभारी संकट आने वाला है ऐसा आपका वचन मुझे सुनने को मिला था। इसका