Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 63
________________ ५६] अहिंसा की विजय] महेन्द्र ने मृगावती के पत्रों का जो उत्तर दिया था उसका भाव निम्न प्रकार सारांशरूप में था "आचार्य श्री के दो तीन शिष्य जेलखाने में बन्दी बना लिए गये, तुमको भी राजमहल से बाहर जाने की बन्दिस कर दी गई है यह सब पढ़ कर बहुत ही खराब लगा । बलिबन्द नहीं हुयी तो आचार्य श्री प्राणान्त तक उपवास करने वाले हैं, यह पढकर तो बहुत ही अधिक चिन्ता हुयी। मैं कल अवश्य ही आचार्य श्री के दर्शन करने आऊंगा और जरुर ही मैं उसके विषय में प्रयत्न करने का उपाय हो करूगा... ...!" पत्र के नीचे "युवराज महेन्द्र, चम्पानगर" इस प्रकार लिखा था । नरसिंह के हाथ से वह पत्र ले पुनः माणिकदेव ने उसे ध्यान पूर्वक पढा और उसके टुकड़े टुकड़े कर घृणा से फाड कर फेंकते हुए बोला---- "बच्चे, यहाँ आ” कोई पास में तो नहीं है यह जानकारी कर उसके कान मे घोरे से माणिकदेव ने कुछ कहा, उस भयंकर आज्ञा को सुनकर, नरसिंह एकदम चौंका, परन्तु माणिक देव की जलते अंगारे के समान नेत्र देख कर घबडाया और लडखडाती आवाज में बोला "ठीक है, उसका रक्त लाकर दूंगा" क्या थी वह भयंकर प्राज्ञा ? XEXSEXXXXXXXXXX XXXXXXXX हिंसक मनुष्य अपने पोषक को ___भी नहीं छोड़ता। 张家界民眾界眾多著深深深深界各

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